याद आता है गुजरा जमाना 58
मदनमोहन तरुण
यह तो धरती माँ है !
मेरे मनोविज्ञान की कक्षा में कई आदिवासी छात्र - छात्राएँ थीं। जिन्दगी की अभिव्यक्ति के नये आयामों से निकटता प्राप्त करने की ललक ने मुझे स्वाभाविक तौर पर उनकी ओर आकर्षित किया।मैने गौर किया कि वे अच्छे - खासे कपडे॰ पहने हुए थे। उससे कहीं भी उनकी आर्थिक तंगी व्यक्त नहीं हो रही थी।परन्तु मैने देखा कि उनमें से किसी के पाँव में जूता या चप्पल नहीं है। उनसे सीधे - सीधे पूछने का साहस नहीं जुटा पाया। जब उनसे मेरी अच्छी मित्रता हो गयी तो मैने एक लड॰की से पूछा- 'यह बताओ तुम्हारे पैरों में चप्पल क्यों नहीं है ?' उसने तत्काल उत्तर दिया -' चप्पल कैसे पहने। धरती माँ है न ! उस पर चप्पल या जूता पहनकर कैसे चल सकते हैं?' जबाब सुनकर मैं स्तंभित रह गया। इस उत्तर की हमने कभी उम्मीद नहीं की थी।
मैं छुट्टी के दिनों में कई बार उनके सुदूर गाँवों के घरों में रुका और प्रयास किया कि जबतक रहूँ ,उन्हीं की वेशभूषा में उनके साथ रहूं। नृत्य ,गायन और हडि॰या ( घर में बनी शराब)उनकी जिन्दगी का अभिन्न अंग है। किसी त्योहार के अवसर पर वे सूखी लकडी॰ का एक विशाल कुंदा जला लेते और उसी की गर्मी और रोशनी में हडि॰या पीते हुए पूरी - पूरी रात नाचते - गाते रहते। वे रातें मेरी जिन्दगी की यादगारों की सबसे कीमती पूँजी है। जीवन का वह सहज - स्वाभाविक, उत्साह से भरा उच्छल प्रवाह आज भी मेरी ऊर्जा का एक अंग है।
लम्बे -लम्बे बाल बढा॰ए आदिवासी नौजवान ,कच्छा पहने , उघाडे॰ बदन बाँसुरी की तान छेड॰ते हुए अपनी प्रेयसी का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। लड॰कियाँ फूल और पत्तियों से अपना साज - सिंगार करती हैं।
ईसाई मिसनरियों का यहाँ के सुदूरवर्ती गाँवों तक प्रवेश है। कुछ लोग यह शिकायत करते हैं कि ये मिसनरियां हिन्दुओं को ईसाई बना रही हैं। परन्तु , सच तो यह है कि यह इन आदिवासियों का सौभाग्य है कि वे बडी॰ संख्या में ईसाई धर्म में दीक्षित हुए।इसके कारण उन्हें अच्छा भविष्य मिला, बच्चों को स्कूल जाने और जिन्दगी को सजाने - सँवारने का मौका मिला। इससे भी अच्छी बात यह हुई कि उन्हें समाज में सम्मानित स्थान मिला। ऐसा हिन्दुत्व किस काम का जो धर्म और व्यवस्था के नाम पर समाज के एक बहुत बडे॰ भाग को अछूत और निकृष्ट बना कर रखता है। जिन्दगी केवल रामजी का भजन नहीं है। आदमी को सम्मान चाहिए, शिक्षा चाहिए, भोजन चाहिए। जो धर्म समाज के एक हिस्से को दूसरों की सुविधा के लिए छोटा बना कर रखता है , उसे ततक बडे॰ - बडे॰ दावे करने का कोई अधिकार नहीं है ,जबतक कि वह सबों को सम्मानपूर्ण स्थान नहीं देता।
ईसाई मिसनरियों ने चाहे जिन करणों से उनतक अपनी पहुँच बनाई हो , वह उनके जिन्दगी के लिए उत्थानकारी सिद्ध हुआ है।
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