याद आता है गुजरा जमाना 70
-मदनमोहन तरुण
मेरी पत्नी बदल गयी होती !
विवाह के बाद भी मैंने अपनी पत्नी की एक झलक नहीं देखी थी, इस बात को जिसने भी सुना, उसीने आश्चर्य प्रकट किया और इसकी आलोचना की।विवाह के बाद उनकी विदाई तीन वर्षों के बाद होगी , इस बात से घर में बहुत आक्रोश था। विशेषकर माँ को निराशा हुई।माँ ने कहा यदि उन्होंने विवाह के पहले ही इस प्रथा के बारे में बताया होता तो मैं कभी यह शादी उनके घर नहीं करती।इस बात को लेकर माँ की पिताजी से कई बार कहा - सुनी होगयी। अन्ततः पिताजी ने मेरे श्वसुर जी से बात की और उन्हें पूरे परिवार की भावनाओं से अवगत कराया। इसका परिणाम यह हुआ कि तीन वर्षों की विदाई की अवधि एक वर्ष में परिणत हो गयी।
आखिर वह समय भी आ ही गया। हम परिवार के करीब पचीस लोग विदाई के लिए श्वसुराल पहुँचे।वहाँ हमलोगों का भव्य स्वागत हुआ और दूसरे दिन विदाई हुई। शादी और विदाई का यह सबसे व्यस्त महीना था और जिसदिन हमलोगों को लौटना था वह शायद सबसे अधिक लग्न का समय था। यही सोचकर हमलोग अपने कुटुम्बियों में दो पहलवान किस्म के लोगों को लेकर आए थे, ताकि वे हमें किसी तरह ट्रेन में चढा॰ सकें। हमलोगों का अन्दाज सही निकला। विदाई के बाद जब हमलोग स्टेशन पहुँचे तो वहाँ असाधारण भीड॰ थी।प्लेटफाँर्म कहीं पाँव टिकाने जगह नहीं ती। स्थान - स्थान पर बारातियों की भीड॰ थी । नये - नये जोडे॰ रंगीन कपडों में ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमलोगों के साथ हमारे मामा जी थे जो बडी॰ मुस्तैदी के साथ सबको हिदायतें दे रहे थे कि ट्रेन पर कैसे सवार होना है। हमलोगों के साथ काफी सामान भी था। हम प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि ट्रेन के आने की आवाज सुनाई पडी॰ । इसबात से चारो ओर अफरा - तफरी मच गयी।ट्रेन जब प्लेटफार्म पर पहुँची तो वह नजारा दहला देनेवाला था।पूरे ट्रेन में जैसे पाँव रखने की भी जगह नहीं थी। अनेकों लोग डब्बों के हैंडल से लटके हुए थे ,सैंकडों लोग ट्रेन के छज्जे पर सवार थे।कुछ भी सोचने का समय नहीं था। हमारे पहलवान से सम्बन्धी आगे बढे॰ और उन्होंने बहुत जोरों से 'जय बजरंगबली' का नारा लगाया और लोगों को रपटते - झपटते ट्रेन पर सवार होगये और उनके पीछे - पीछे हम सभी लोग । अब हमसब ट्रेन के कम्पार्टमेंट में थे।थोडी॰ ही देर में ट्रेन चलपडी॰।अब मैं अपनी पत्नी को ढूँढ॰ने लगा।सामने की सीट पर देखा कि एक नवविवाहिता युवती ठीक वैसे ही कपडे॰ में ,जैसा मेरी पत्नी पहने थीं, सामने की सीट पर बैठी है। मैंने समझ लिया कि यह मेरी ही पत्नी है जो मेरे साथ - साथ ट्रेन पर सवार हुऐ और सामने जगह बना कर बैठ गयी। मैंने भी उन्हीं के पास थोडी॰ जगह बनाई और बैठ गया।मेरी जेब में काफी चाकलेट थे। मैने एक चाकलेट उनकी ओर बढा॰या।उन्होंने तुरत चाकलेट लेलिआ।इसी बीच मैंने उनके घूँघट के भीतर झाँक कर देखा।यह मेरी गहरी निराशा का पल था। उस युवती का चेहरा पतला - सा अस्थिप्रधान था। वह गोरी जरूर थी ,परन्तु भावविहीन और सपाट चेहरेवाली औरत थी जो निर्विकार भाव से मेरे द्वारा दिआ गया चाकलेट खा रही थी। उसे जैसे मेरी उपस्थिति से कुछ भी लेना -देना नहीं था।
मुझे लगा मेरे साथ धोखा हुआ है। क्या अब मुझे इस औरत के साथ अपना पूरा जीवन बिताना होगा?मै समझ नहीं पा रहा था कि मै खुद पर हँसूँ या रोऊँ। मुझे अब अपने पिताजी पर क्रोध आ रहा था कि उन्होंने बिना देखै समझे इस बन्धन में बाँध दिआ।मैंने गहरी निराशा से सामने देखा। देखा कि मेरे ठीक सामने एक युवक नये कपडे॰ पहने और हाथ में मोटी - सी लाठी लिए खडा॰ है और मेरी ओर करीब - करीब जलती निगाहों से घूर - घूर कर देख रहा है। वह कुछ बोला नहीं। मैंने समझा इस भीड॰ में उसकी पत्नी कहीं और बैठ गयी है ,इसीलिए वह हमदोनों को साथ बैठे देख कर ईर्ष्या से इस तरह घूर - घूर कर देख रहा है। मैंने उसकी ओर ध्यान नहीं दे सका।अब मैं अपने मामाजी को ढूँढ॰ने लगा जिनसे मैं सबसे अधिक निकट था । मैं इतना निराश था कि तुरत उन्हें अपनी भावनाओं से परिचित कराना चाहता था। परन्तु वे आस -पास में कहीं भी नही दिखे। तभी मुझे मेरी दासियाँ दिखाई दीं जो साथ आ रही थीं। वे शायद मुझे ही ढूँढ॰ रही थीं। उनलोगों ने मेरे मामा जी को बताया। जानकर मेरे मामा जी मेरे पास किसी तरह भीड॰ को चीरते हुए मेरे पास आए। मुझे इस नवविवाहिता के पास बैठे देख कर बोले - ' यह तुम किसके साथ बैठे हो! तुम्हारी पत्नी तो उस तरफ है।'मैंने उनकी ओर सुखद आश्चर्य से देखा। मेरे चेहरे का तनाव मिट गया। मुझे राहत मिली। बिना देरी किए मैं उस स्थान से जैसे ही उठा , वैसे ही सामने लाठी लेकर खडा॰ युवक तुरत उस युवती के पास बैठ गया। जरूर वह उसका पति होगा जो इतनी देर तक अपने को सम्हाले हुए था।मेरे पास कुछ और सोचने का समय नहीं था।
मैं लपकता हुआ मामाजी के साथ आगे बढ॰ गया।मामाजी ने मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए सामने बैठी सुन्दरी युवती से कहा - 'लो बहू !सम्हालो इसे। यह है तुम्हारा पति।यह उस ओर किसी और नवविवाहिता के साथ बैठा था।' सुनकर उस गोरी ,सुन्दरी युवती की मुस्कान उसके पूरे चेहरे पर फैल गयी और उसका चेहरा आरक्त हो गया।उसे देखकर मेरा ह्रदय हिल्लोलें लेने लगा। मैं सचमुच इतना प्रसन्न इसके पहले कभी नहीं हुआ था। मैंने ईश्वर को शतशः धन्यवाद दिआ। यह मेरी मनोकामना के अनुकूल पत्नी थी। मेरी कविताओं की तरह मोहक।
मैंने अपनी जेब को टटोला तो पाया कि उसमें अब एक भी चाकलेट शेष नहीं बचा था।वह युवती सारे चाकलेट खा चुकी थी।परन्तु मुझे इस बात की अब कोई चिन्ता नहीं थी।चाकलेट भले खत्म होगया हो , परन्तु मुझे इसपल जिस मिठास का अनुभव होरहा था वह भला और कहाँ मिल सकता था ! मैं इस पल संसार का सबसे सुखी इंसान था।
तब से अबतक इक्यावन वर्ष बीत चुके हैं और हम पति -पत्नी , ईश्वर की दया से अपने बाल - बच्चों के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
परन्तु, उस ट्रेन की घटना को मैं अबतक भुला नहीं पाया हूँ। सोचता हूँ अगर मामाजी नहीं होते और मैं उस दूसरी औरत को लेकर घर आगया होता तो !
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