याद आता है गुजरा जमाना 61
मदनमोहन तरुण
यह मरने के लिए शानदार जगह नहीं
अपने राँची के मित्रों में कुछ की याद बरबस ही आती है।आदमी का स्मृति पटल अद्भुत है।
वह व्यक्तियों ,छवियों का अंकन उसके व्यक्तित्व की एक - एक विशेषता के साथ करता है। उनका , चलना, बोलना,रुकना,सोने की प्रक्रिया सबकुछ इतनी जीवंतता के साथ होता है कि समय का अंतराल शायद ही उसमें कुछ अंतर ला पाता है। सच तो यह है कि समय के साथ उनकी विशेषताएँ , कमियाँ अधिक विश्वसनीयता के साथ खुलती चली जाती हैं।पहले देखी वृक्षों -वनस्पतियों की पत्तियों का हवा के हल्के झकोरों में मृदुल थरथराहट के साथ हिलना, उसका पूरा परिवेश , पक्षियों का पंख फैला कर उडा॰न भरना , अतीत का सारा देखा हुआ पल जैसे जीवन भर के लिए अपना बन जाता है।
राँची हिल की याद के साथ मेरे एक मित्र की याद जुडी॰ हुई है। सत्यदेव राजहंस उनदिनों राँची रेडियो के साहित्यिक कार्यक्रमों के प्रोग्राम एक्जीक्युटिव थे। मुझसे उनकी काफी घनिष्ठता हो गयी थी।उनदिनों राँची रेडियो स्टेशन के निदेशक थे पंजाबी और हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक कर्तार सिंह दुग्गल। राजहंस जी का जीवन उन्होंने दुष्कर बना दिया था। राजहंस अपना कार्यक्रम अपनी रुचि से चलाना चहते थे , परन्तु दुग्गल जी समय - समय पर उन्हें अपने सुझाव के अनुसार लोगों को बुलाने को कहते। राजहंस जी के मतानुसार उनमें से कई लेखक तो क्या, उन्हें कलम तक पक॰ने का सऊर नहीं था।
राजहंस बहुत भावुक तबीयत के आदमी थे।इन बातों से उका प्रेशर बढ॰ जाता था।वहाँ उनकी सुननेवाला और कोई भी नहीं था, इसलिए वे मुझसे मिलने मेरे होस्टल में आजाते थे। मैं बातें करके उन्हें शांत करने की कोशिश करता था।
एकबार वे ऐसी ही मनःस्थिति में मुझसे मिलने आए और कहा 'चलो, हिल पर चलते हैं।' हिल पर जाने के बाद वे उसकी चोटी पर चढ॰ गये और कहा - 'आज मैं आत्महत्या करने जारहा हूँ। तुम्हें साथ इसलिए लेकर आया हूँ कि मेरे मरने के बाद तुम दुनिया को मेरी कहानी सुना सको कि मैं मनुष्य की निर्दयता का किस प्रकार शिकार बनाया गया ।' सुनकर मैं घबरा गया। मेरे लिए यह एक नया अनुभव था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसे में क्या करूँ। मैंने खुद को सम्हाला और शांतभाव से कहा - 'मैं आपके आत्महत्या करने के इरादे से सहमत हूँ। परन्तु यह जगह आप जैसे साहित्यकार के मरने के लिए उपयुक्त नहीं है। हमें इसके लिए कोई और शानदार जगह चुननी चाहिए, ताकि जब कोई सुने तो उसे लगे कि 'बाह ! क्या शानदार मौत थी।'
मेरी बात उन्हें पसन्द आगई। उन्होंने कहा -'तुम बिल्कुल ठीक कहते हो। मूझे तुमसे ज्यादा कोई नहीं समझ पाया।,तनिक रुके फिर बोले - ' इस जगह के बारे में मुझे कम जानकारी है। मेरी आत्महत्या के लिए उपयुक्त जगह तुम्हें ही ढूँढ॰नी होगी।' मैने उन्हें आश्वस्त किया कि ऐसी शानदार जगह मैं जल्दी ही ढूँढ॰ लूँगा।
सुनकर वे खुश होगए और कहा चलो कहीं चाय पीते हैं।
राजहंस के जीवन में आत्महत्या के ऐसे दारुण पल कई बार आए ,परन्तु मैंने किसी -न - किसी बहाने उन्हें बचा लिया।
बाद में उनके सम्पादन में एक कविता संकलन का प्रकाशन हुआ जिससे उनका फ्रस्ट्रेशन कुछ कम हुआ।
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