याद आता है गुजरा जमाना 68
मदनमोहन तरुण
मेरा विवाह
एक बार पिताजी एक सेमिनार में भाग लेने गये। वही एक अन्य डाँक्टर ने इनसे अपनी बेटी की बात चलाई और पूछा कि उन्हें यदि किसी योग्य लड॰के की जानकारी हो तो बताएँ। पिताजी ने कहा कि विवाह तो मुझे अपने लड॰के का भी करना है , जो अभी कालेज में पढ॰ता है। इतना सुनते ही दूसरे डाँक्टर बन्धु ने उनसे कहा कि ,भला इससे अच्छी और क्या बात होसकती है।और उन्होंने पूछा - 'यदि आप चाहें तो रिश्ता यहीं तय हो जाए।' मेरे पिताजी ने हामी भर दी और विवाह तय होगया। जब वे लौटकर आए तो उन्होने मेरी माँ को बताया। माँ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि उन्होंने इतना बडा॰ निर्णय इतनी जल्दवाजी में कैसे ले लिया! माँ ने पूछा 'आपने लड॰की देखी नहीं तो यह कैसे पता चलेगा कि वह देखने में कैसी है ? सुन्दर या असुन्दर , गोरी या काली!' पिताजी ने कहा लडकी जरूर गोरी और सुन्दर होगी क्योंकि उसके पिताजी सुन्दर थे।' माँ नहीं रुकी। उसने पूछा - अगर वह अपनी माँ जैसी हुई तो! आपने उसकी माँ को तो नहीं देखा!। पिताजी चुप रहे। माँ ने मेरे होनेवाले श्वसुर जी का पूरा पता लेकर दूसरे दिन अपनी दो विश्वसनीय दासियों को लड॰की को देखने और मेरी होनेवाली पत्नी के बारे में पता लगाने को भेजा।दोनों दासियाँ दो दिनों के बाद सब पता लगाकर लौटीं और बताया कि लड॰की गोरी और सुन्दर है तथा कहीं से उसके बारे में कोई गलत -सलत जानकारी नहीं मिली है। सुनकर माँ को संतोष हुआ और उसने शादी पक्की करने के पक्ष में ऊपनी राय देदी। शादी की बात पक्की हो गयी और विवाह का दिन भी निश्चित कर दिया गया।
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