याद आता है गुजरा जमाना 62
मदनमोहन तरुण
चलो मरकर देखें
मृत्यु जीवन का सबसे रहस्यमय पक्ष है।आखिर उसके बाद होता क्या है!हिन्दू दर्शन जीवन को अविरल यात्रा मानता है। यहाँ एक दरवाजे से जानेवाला इस जन्म के कर्मों - कुकर्मों का फल भोग कर वापिस चला आता है। परन्तु मौत के बाद की वह दुनिया है कैसी ? पुराणादि वहुत - सी बाते कहते हैं , परन्तु हर किसी का निजी अनुभव तो अलग होता है न !
एक बार मैं अपने भूगोल विभाग के मित्रों के साथ विशेष अध्ययन दल के भाग के रूप में तिलकसुत्ती के गहन जंगलों में गया था। हम एक निकटवर्ती गाँव में रुके थे। यह घनघोर जंगल का इलाका था। यहाँ बाघों का देखा जाना आम बात थी। यहाँ के लोगों के दैनिक जीवन में बाघों से भिडं॰त होती रहती थी।दोनों ने साथ - साथ जीना सीख लिया था। यहाँ के बच्चे अपने अनुभव की कहानियाँ सुनाते हुए बताते कि किस प्रकार उन्होंने कई बार अपनी बकरी को बाघ के मुँह से खींच कर बचा लिआ था। बकरी उनके लिए केवल बकरी नहीं थी , वह उनकी जीविका का अभिन्न हिस्सा थी।
रात में हम कई बार नदी किनारे गये। ऊपर गोल चमकता चन्द्रमा, नीचे कलकल निनाद के साथ बहती नदी और चारों ओर सघन वृक्षों का अद्भुत वितान ! मन भागता हुआ न जाने किन रहस्यमय लोकों की सैर कर आता।
एकदिन ऐसे ही पलों में हम मित्रों के बीच मृत्यु की चर्चा होने लगी।यह चर्चा इतनी गहन हो गई कि हमलोगों ने अंततः तय किया कि केवल चर्चा से काम नहीं चलेगा , आज मर कर देखें कि वह जगह है कैसी !
हम चार मित्र थे।हमने तय किया कि हम चार अलग - अलग दिशाओं में तबतक चलते चले जाएँगे जबतक मर न जाएँ।चारों ओर असूझ अंधकार और गहन सन्नाटा था। भला मृत्यु की खोज के लिए इससे अच्छा समय और क्या होसकता था ! हम एक - दूसरे से गले मिलकर और यह वादा कर कि उस लोक में मिलेंगे, चल पडे॰।
मैं चलता चला जारहा था। मुझे पता नहीं था कहाँ जा रहा हूँ। रात इतनी अँधेरी थी कि कुछ भी सूझ नहीं रहा था।चलते - चलते थककर कहीं गिर पडा॰। बेहोश होगया या गहरी नींद आगयी।कुछ पता नहीं। जब आँखे खुलीं तो देखा रोशनी है । सवेरा हो चुका था। मैं उठा। चलने लगा। किसी गाँव में पहुँच गया।पूछते - पूछते मैं कैंप पहुँच गया।देर - सबेर अन्य मित्र भी पहुँच गये। हमने किसी को इस बारे में बताया नहीं , लेकिन हमें लगा कि मौत तक पहुँचने के लिए मौत की इजाजत जरूरी है।
यह मेरी जिन्दगी के हनूठे अनुभवों में एक है।
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