याद आता है गुजरा जमाना 74
मदनमोहन तरुण
यात्रा वैद्यनाथधाम की
माँ ने मन्नत माना था कि मेरे विवाह के पश्चात बहू को लेकर परिवार के लोग वैद्यनाथधाम जाकर बाबा के दर्शन करेंगे। इस मन्नत को पूर्ण करने में जरा भी देरी नहीं की गयी ।माँ ने अगले ही दिन वैद्यनाथधाम जाने का कर्यक्रम निश्चित कर दिया। समाचार सुनते ही परिवार के सभी सदस्यों में उत्साह की लहर फैल गयी। इस समाचार को सुनते ही मेरी पत्नी इतनी उत्साहित हुई की वे माँ में लिपट गयीं। माँ को इससे बहुत राहत मिली। अपनी बहू को इस प्रकार खुश देख कर माँ के उत्साह का पारावार नहीं रहा। मेरी स्थति भी ऐसी ही थी।
हिन्दू देवी - देताओं में मुझे दुर्गा और भगवान शंकर का चरित्र बहुत ही रोचक और प्रभावशाली लगता है। देवी - देवताओं के बीच ये क्रांतिकारी विभूतियाँ हैं जिन्होंने अनावश्यक मर्यादाएँ तोड॰कर नई परम्पराएँ बनाईं। दुर्गा ने स्त्री का सर्वथा नया स्वरूप प्रकट किया। युद्धभूमि में प्रचण्ड रूप धारणकर उन्होंने उन आततायिओं का भ्रम सदा के लिए दूर कर दिया जो उन्हें मात्र स्त्री समझ कर अपने वश में करना चाह रहे थे। वे स्त्री - शक्ति और सत्ता का प्रचण्डतम निनाद है। वे सुन्दरी हैं ,वे महा विकटरूप वाली हैं।वे समस्त वस्त्रों - आभूषणों से मंडित हैं ,वे नंग - धडं॰ग हैं।
दूसरी ओर शिव का चरित्र भी पूर्णतः असाधारण है। शिव का चरित्र समस्त वर्जनाओं से परे है। जो भी लोकमान्य नहीं है , अथवा लोकबहिष्कृत है ,वह शिव के यहाँ स्वीकृत है या यों कहें कि वही शिव की पहचान है। शिव श्मशान की राख से अपना श्रृंगार करते हैं, भूत , पिशाच, नाग, वृश्चिक आदि उनके सबसे निकट हैं। उनके उपासकों में दानवों की विशाल संख्या है। वे भाँग ,धतूरे का सेवन करते हैं तथा महानाशक कालकूट विष को भी संसार की रक्षा के लिए स्वयं में समाहित करने में समर्थ हैं। वे महान नर्तक हैं। वे सृजन और विध्वंस दोनों में समर्थ हैं। योनि में स्थापित शिव के लिंग की पूजा होती है।
वैद्यनाथधाम से दो पौराणिक कहानियाँ जुडी॰ हैं।
लंकाधिपति रावण शिव का महान भक्त था। उसकी प्रबल इच्छा थी कि भगवान शंकर लंका में रहें। उसने अपनी इस इच्छाकी पूर्ति के लिए शिव जी की घोर तपस्या की किन्तु भगवान शंकर इसके लिए तैयार नहीं हुए। तब रावण ने कैलास पर्वत को ही शिव समेत उखाड॰कर श्रीलंका लेजाने की चेष्टा की। इससे विक्षुब्ध होकर भगवान शंकर ने रावण का अँगूठा दबा दिया जिससे उसे बहुत पीडा॰ हुई। अंततः भगवान शंकर ने उसे क्षमा कर दिया। फिर भी रावण अपनी इस इच्छा पर कायम रहा कि वे श्री लंका में चलें। अंततः भगवान शंकर ने अपने द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे से एक रावण को इस शर्त के साथ दिया कि वह इस लिंग को बिना कहीं रुके या पृथ्वी पर रखे लंका लेजाकर स्थापित कर दे। उन्होंने इसके साथ यह शर्त भी लगा दी कि यदि उसने इस लिंग को कहीं पृथ्वी पर रखा तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा और वहाँ से कभी ले जाया नहीं जा सकेगा। रावण संकल्पपूर्वक शिवलिंग को लेकर लंका के लिए चल पडा॰। यह देख कर देवताओं को बहुत चिंता हुई। उन्हें लगा कि रावण यदि शिवलिंग को लंका तक ले जाने में सफल हो गया तो वह अविजेय हो जाएगा। देवताओं ने जलाधिपति वरुण देव से प्रार्थना की कि वे कोई उपाय करें। वरुण देव ने रावण के पेट में प्रवेश कर लिया जिससे रावण को बहुत जोरों से पेशाब लगी। वह उसे रोक पाने में असमर्थ हो गया ।वह चारों ओर किसी ऐसे आदमी की खोज करने लगा जो इस कार्य में उसकी मदद कर सके। तभी उसने पास खडे॰ एक तेजस्वी व्यक्ति को देखा जो उसकी मदद के लिए तैयार हो गया। रावण उस व्यक्ति को उचित निर्देश देकर पेशाब करने चला गया। वह व्यक्ति और कोई नहीं, स्वयं भगवान विष्णु थे। वे रावण के आँखों से ओझल होते ही शिवलिंग को भूमि पर स्थापित कर वहाँ से चले गये। रावण वहाँ तीन दिनों तक लगातार पेशाब करता जिससे वहाँ एक खार का निर्माण हो गया जिसे लोग रवणाखार कहते हैं। रावण जब तीन दिनों के बाद उस स्थान पर आया, जहाँ वह युवक को शिवलिंग देकर चला गया था तो उसने पाया कि वह युवक नहीं है और वह शिवलिंग पृथ्वी पर रखा हुआ है। रावण ने शिवलिंग को उठाने की बहुत चेष्टा की परन्तु शिवलिंग वहाँ से टस - से - मस नहीं हुआ। क्रोधित रावण ने अपने अँगूठे से शिवलिंग को जोरों से दबा दिया जिससे वह एक ओर टेढा॰ होता हुआ जमीन से सट गया। वैद्यनाथधाम के शिव आज भी वहाँ इसी रूप में विद्यमान हैं। रावण शिव जी के इसी स्थल पर रह जाने से इतना निराश हुआ कि उसने अपने दस शिरों में से नौ काट कर भगवान शंकर पर चढा॰ दिये बाद में भगवान शंकर ने वैद्य की भाँति रावण के सारे शिर उसके धड॰ से फिर से जोड॰ दिये। इसीलिए इस स्थान का नाम वैद्यनाथधाम पडा॰।
इस स्थान को बैजनाथ धाम भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान की सबसे पहली खोज बैजनाथ नामक एक चरवाहे ने की थी इसीलिए यह स्थान बैजनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक सूत्रों के अनुसार इस स्थान से एक और कथा जुडीं॰ है। वैद्यनाथधाम देवी का 52वाँ शक्तिपीठ भी माना जाता है।
सती ने देखा कि उनके पिता दक्षप्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में उनके पति शिव को जानबूझ कर उनके पिता ने नहीं बुलाया है तब वे अपने पति के इस अपमान से विक्षुब्ध हो उठीं और यज्ञ के धधकते कुंड में प्रविष्ट हो गयीं।जब शिव जी को इसकी सूचना मिली तो वे विक्षुब्ध हो उठे और उन्होंने दक्ष का यज्ञ पूर्णतः विध्वस्त कर डाला और अपनी पत्नी सती का मृत शरीर अपने कंधे पर लिये बेचैन सी लोकों में दौड॰ते रहे। वे सती को मृत मानने के लिए तैयार नहीं थे।सती का शरीर समय क्रम में गलने लगा तब विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर को कई टुकडों॰ में काट डाला । वे टुकडे॰ जहाँ - जहाँ गिरे वहीं शक्ति पीठ बन गये। वैद्यनाथ धाम में सती के हृदय का एक टुकडा॰ गिरा और यह भी शक्तिपीठों में एक हो गया।
वैद्यनाथधाम का ज्योतिर्लिंग अपने देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। प्राचीनता में यह शिवलिंग शिवपुराण के अनुसार त्रेताकालीन है। यह देश के 52 तंत्रपीठों में से एक माना जाता है।सुप्रसिद्ध विद्वान एवं तांत्रिक पं गोपीनाथ कविराज भी वैद्यनाथधाम को तांत्रिक साधनापीठों में महत्वपूर्ण मानते हैं।यह भी मान्यता है कि जहाँ शिवलिंग स्थापित है वह पूर्वकाल में श्मशान था।तांत्रिक साधना की कई पद्धतियों का श्मशान से सम्बन्ध रहा है।भगवान शंकर स्वयं भैरव हैं।यहाँ शिव और शक्ति ,जग्जननी और कालभैरव दोनों की साधना होती है। यहाँ के एक कुंड में अनन्तकाल से यज्ञाग्नि प्रज्वलित है , जहाँ साधक साधना करते हैं।
पत्थर की दीवारों से घिरे इस विशाल परिसर में कुल मिलाकर बाईस मंदिर हैं। बाबा वैद्यनाथ के मंदिर का द्वार पूर्वाभिमुख है।
वैद्यनाथधाम
जब हमलोग वैद्यनाथधाम पहुँचे तब सवेरा हो चुका था। हमारे आने की सूचना हमारे पंडाजी को मिल चुकी थी। वे स्टेशन से हमें अपने निवासस्थान पर ले गये और हमलोगों के रुकने की उचित व्यवस्था की।पंडाजी के यहाँ रुकने का एक बहुत बडा॰ लाभ यह हुआ कि हमें उनकी पोथी में विस्तार से अपनी कई पीढि॰यों के पूर्व पुरुषों का नाम और विवरण देखने को मिला।यदि पंडा जी की यह पोथी नहीं होती तो मैं शायद ही उनके बारे में इतने विस्तार से सारी चीजें जान पाता।यह एक महान परम्परा रही है।
पंडा जी के यहाँ कुछ विश्राम कर करीब दस बजे हम उस विशाल - मंदिर - परिसर में पहुँचे। वहाँ भक्तों की बहुत भीड॰ थी। मंदिर के भीतर प्रवेश करना बहुत कठिन था । कई लोग बलपूर्वक अंदर जा रहे थे और कई बाहर से ही लोटे का पानी चढा॰ रहे थे।इस भीड॰ में मैने अपनी पत्नी का एक नया रूप देखा। वे लोटे में पानी लिए माँ के मना करते- करते भीड॰ में घुसती हुई मन्दिर के अन्दर चली गयीं। शिवलिंग के पास जाकर बैठ गयीं । पूजा करते समय उनके सिरपर मिट्टी के पानी से भरे बर्तन गिरते रहे। माँ बाहर घबरा रही थी । चिन्ता हम सबों को थी। परन्तु थोडी॰ देर बाद हमलोगों ने उन्हें दूसरे मार्ग से बाहर आते देखा। उनकी लुटिया में शिवपिंड के पास का पानी था और हाथ में धतूरा।वह पानी उन्होंने मेरे सिर पर छिड॰का और फिर सबके सिर पर। घरके बाहर यह श्रीमतीजी के साक्षात्कार का मेरा पहला अनुभव था। पंडाजी की मदद से परिवार के सभी सदस्यों ने मंदिर में बाबा भोलेनाथ का दर्शन किया और जल चढा॰या।
वह भविष्यवाणी
जब हमलोग पंडाजी के घर से जहानाबाद के लिए लौटने लगे तब सामने खडी॰ एक दिव्य - सी महिला ने मेरी श्रीमती को गौर से देखते हुए कहा - 'बेटा , तुम आज से नौ महीने के बाद एक संतान की माँ बनोगी।' तत्काल मुझे उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ न किसी ने उस समय उस पर ध्यान ही दिया ,हाँ माँ ने उसे कुछ पैसे दिए और हमलोग वहाँ से चल पडे॰।
आप इसे संयोग कहें या चमत्कार ,उस महिला की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक नौ महीने बाद मेरी बेटी सोमा का जन्म हुआ।अवश्य ही यह वैद्यनाथधाम के बाबा सोमसोमेश्वर महादेव का पुनीत आशीर्वाद ही था जो उस महिला की वाणी में प्रतिफलित हुआ।
मेरे जीवन में ऐसे दैवी चमत्कार कई बार हुए हैं जिन पर मैं बाद मे लिखूँगा।
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