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Tuesday, January 31, 2012

Yaad Ataa Hai Gujaraa Jamaanaa 93


सुमन कल्याणपुर  : याद आता है गुजरा जमाना 93

मदनमोहन तरुण

एक मोहक आवाज , जो कहीं खो गयी

तब मैं दिल्ली के लिए मसूरी से रात की सबसे अंतिम बस से रवाना होता था।इसका एक कारण था।रास्ते में पहाड॰ की ऊँचाई पर एक छोटा - सा होटल था ।उस होटल में बाँस की एक ऊँची लग्गी गडी॰ थी ,जिसके अंतिम सिरे पर एक छोटा -सा साउण्ड बाक्स टँगा होता था। होटलवाला रात में हिन्दी के केवल पुराने और चुने गाने बजाया करता था। अर्ध रात्रि के निविड॰ सन्नाटे में दूर - दूर तक पर्वत की ऊँचाई से अँधेरी घाटियों में गूँजती वह आवाज हमें किसी रहस्यमय संसार में उठा ले जाती थी। मैं इस सुख से स्वयं को कभी वंचित नहीं कर सकता था।

एकबार मैं अपनी पत्नी और बेटी के साथ बैठा मैं चाय और गानों की चुस्की ले रहा था तभी हवा में तैरती गाने की एक मोहक आवाज ने हमारे दिल की गहराइयों में दस्तक देदी - अज हूँ न आए बालमा , मौसम बीता जाए ,हाय रे मौसम बीता जाए' मुहम्मद रफी के साथ गूँजती इस आवाज को न जाने मैंने कितनी बार सुना है , सावन। लेकिन हर बार यह आवाज मन में एक नयी थिरकन पैदा कर देती है। मैंने महिला आवाज की तरीफ करते हुए मुग्धभाव से कहा - बाह , लता जीने गजब का जादू किया है। ' सुनते ही मेरी बेटी सीमा ने मेरा संशोधन करते हुए कहा - 'पापाजी ,यह लता जी की नहीं सुमन कल्याणपुर जी की आवाज है।' सुनकर झटका लगा।सुमन कल्याणपुर। इस आवाज को मैं हमेशा लता जी की आवाज समझता रहा और इसका लुत्फ उठाता रहा। मन ने सवाल किया -' यदि यह आवाज इतनी गरिमापूर्ण है तो उसकी गायिका कहाँ खोगयी ?

इस सृष्टि का निर्माण अद्भुत है। उस महान निर्माता ने यहाँ की हर छोटी - बडी॰ चीज को अपनी एक अलग पहचान दी है , जो दूसरे से नहीं मिलती।चाहे वह मनुष्य हो , पशु हो, वृक्ष हो, पक्षी हो , नदी हो , पहाड॰ हो, झरना हो, हर चीज अपने आप में अनूठी है। हर चीज में ऐसी कोई बात जरूर है जो उसे दूसरे से अलग करती है।हर चीज की अपनी एक 'आरिजिनेलिटी' है। जो अपनी इस 'इयत्ता' को पहचान नहीं पाता, वह अपनी सत्ता खो देता है। निराला जी ने लिखा था - मैने 'मैं' शैली अपनायी।' एकबार आशा भोसले जी ने एक इंटरव्यू में कहा था ' जब मुझे पता चला कि मैं लता दीदी जैसा गाती हूँ ,तो मैं सावधान हो गयी। मुझे लगा यदि मैं इसीतरह गाती रही तो मेरी आवाज लता दीदी की आवाज में खो जाएगी। तब से मैंने जानबूझ कर अपनी एक अलग शैली अपनायी।' और जाहिर है कि इससे आशा भोसले जी  अलग विभूतियों में जानी जाती हैं। लता मंगेशकर इस युग की एक महाविभूति का नाम है। उसका व्यास इतना विशाल है कि उसमें कुछ भी समाहित होकर सदा के लिए अपनी सत्ता को दे सकता है।अतः अपनी निजी पहचान बनाना जरूरी है।

सुमन कल्याणपुर से यहीं भूल हुई। वे एक असाधारण गायिका होने के वावजूद लतामंगेशकर की नकल बन कर रह गयीं। अपनी कोई पहचान नहीं बना सकीं। लतामंगेशकर के ज्वारों में उनकी सत्ता विलीन हो गयी। अन्यथा जिसने - ये किसने गीत छेढा॰, ये मौसम रंगीन शमा, तेरे बिन सूने नयन हमारे, पर्वतों के पेडों पर शाम का बसेरा है , सुरमई उजाला है , सुरमई अँधेरा है , मेरा प्यार भी तू है , ये बहार भी तू है, ये मौसम रंगीन शमा, ठहरिये होस में आ लूँ , तो चले जाइयेगा, अजहूँ न आए बालमा, दिन हो या रात , हम रहें तेरे साथ, न तुम हमें जानो , न हम तुम्हें जानें, बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है, मेरे महबूब  न जा, जैसे सैकडों असाधारण गाने गाये हों, उसकी अलग से कोई पहचान न बन पायी हो ,  यह समझ पाना सरल नहीं है।
मेरे मन में यह सोच कर बडी॰ व्यथा होती है।

इन सब के बावजूद , विशेषज्ञों द्वारा हिन्दी - फिल्म - संगीत की जब भी चर्चा होगी, सुमन जी के श्रेष्ठ सुकंठ से निःसृत मधुर गानों की चर्चा अवश्य होगी, भले ही लोग उसे पहचानने में भूल करें।
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