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Tuesday, January 31, 2012

Yaad Ataa Hai Gujaraa Jamaanaa 90


यह रेडियो सिलोन है , याद आता है गुजरा जमाना 90

मदनमोहन तरुण

यह रेडियो सिलोन है

1950 के दशक में रेडियो सिलोन हिन्दी के मधुरतम फिल्मी गानों के प्रसारण की अन्यतम पहचान बन चुका था। लोग सवेरे रेडियो सिलोन आँन कर लेते।सात बजे से सवा सात तक भजन ,सवा सात से साढे॰सात तक किसी एक पुराने गायक के गाये गीत ,साढे॰ सात से आठ बजे तक पुरानी फिल्मों के गीत और आठ बजे से फरमइशी गानो  का कार्यक्रम , जो श्रोताओं की पसन्द पर आधारित होता था। रेडियो सिलोन ने अपने मधुर गानों के प्रसारण से घर - घर को माधुर्य से भर दिया था। बच्चे , बुजुर्ग , जवान सभी उसके दीवाने थै।
रेडियो सिलोन की एक और पहचान थी जिसके प्रति लोगों में आसाधारण दीवानापन था।
प्रत्येक बुधवार को रात्रि आठ बजे से नौ बजे तक लोकप्रियता की कसौटी पर कसे हुए हिन्दी फिल्मी गानों के कार्यक्रम।
 ‘बिनाका गीतमाला’ ने फिल्मी गीतों के प्रसारण के इतिहास में एक ऐसा इतिहास लिखा जिसका अबतक कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। कहा जाता है कि इसके श्रोताओं की संख्या करीब नौ से बारह करोड॰ थी और इस प्रसारण ने भारत भर की भाषाओं का भेद मिटा दिया था। इसे करीब पूरे भारत में सुना जाता था। इस कार्यक्रम के महाप्राण थे अमीन सायानी। उनकी जादू भरी आवाज को जो एकबार सुन लेता था , उसे कभी भुला नहीं पाता था। इन पंक्तियों को लिखते हुए मेरे भीतर कहीं वह आवाज अब भी गूँज रही है। उनदिनों अमीन सायानी की आवाज से मोहक कोई और आवाज नहीं थी। वे कोई गायक नहीं थे , राजपुरुष नहीं थे , वे महज एक कार्यक्रम के संचालक थे। उनकी आत्मीयताभरी आवाज मे 'बहनों और भाइयों' का सम्बोधन लोगों को दीवाना कर देता था। अमीन सायानी रेडियो सिलोन की महान उपलब्धि थे। सच तो यह है कि अमीन सायानी और रेडियो सिलोन एक - दूसरे के पर्याय बन चुके थे।
रेडियो सिलोन से प्रसारित होनेवाले गानों ने भारतीय रेडियो के मनोरंजन को खतरे में डाल दिया था।    इसका मुकावला करने के लिए भारतीय रेडियो ने 'विविध भारती' नाम से हिन्दी फिल्मों के गानों का प्रसारण शुरू किया।
'संगीत सरिता', भूले - बिसरे गीत' 'जयमाला' आदि फिल्मी गीतों के साथ 'हवामहल' जैसे रोचक कार्यक्रमों ने इस प्रसारण को व्यापक लोकप्रियता दी और इसने विज्ञापनों के बडे॰ भाग पर धीरे - धीरे कब्जा कर लिया। किन्तु रेडियो सिलोन का जादू लोगों पर लम्बे अरसे तक बना रहा। अमीन सायानी का कहीं कोई विकल्प नहीं बन पाया।

आज रेडियो सिलोन की कोई सत्ता नहीं रही। कार्यक्रम आते हैं , परन्तु शायद ही उसे कोई सुननेवाला हो।
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि  आजकल विविध भारती के अलावा भी रेडियो संगीत के कई अच्छे कार्यक्रम प्रसारित होते है , परन्तु एक सहृदय श्रोता के लिए उसका आनन्द उठा पाना सरल नहीं है। एक गाने के समाप्त होने और दूसरे गाने के आरम्भ होने के बीच विज्ञापनों की लम्बी भीड॰ के साथ - साथ अपने प्रसारण को और अधिक रोचक बनाने के लिए उस गाने के प्रस्तोता इतनी भोंडी॰ हरकतें करते हैं कि अगला गाना सुनने के लिए वहाँ रुके रहना असम्भव हो जाता है। ऐसी हरकतें अच्छे से अच्छे गानों का रसभंग कर देती हैं।

मेरे पास हिन्दी फिल्मों के पुराने और नये गानों का सी डी और केसेट के रूप में अच्छा संकलन है, परन्तु रेडियो पर इसे सुनने का आनन्द अलग है। वहाँ लगता हे कि हम इस आनन्द की व्यापक भागीदारी के एक अंग हैं।

रेडियो सिलोन के हिन्दी फिल्मों के प्रसारण की व्यापक भागीदारी हमें एक विशाल श्रोता परिवार की संवेदना से जोड॰  देती थी। अमीन सायानी की लचीली, परन्तु सधी प्रसारण पद्धति में किसी भोडे॰पन की तो कल्पना भी नहीं  की जासकती थी। आज वह अतीत केवल स्मृति मात्र बनकर रह गया है मगर उसकी मिठास की अनुभूति को समय में मिटाने की क्षमता कहाँ !
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