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Tuesday, January 31, 2012

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 88


दूसरी भविष्यवाणी : याद आता है गुजरा जमाना 88

मदनमोहन तरुण

दूसरी भविष्यवाणी

24 दिसम्बर 1969 को जब मैंने गवर्नमेंट कालेज ज्वाइन किया , तब गौरीनाथ शर्मा जी की दूसरी भविष्यवाणी का सातवाँ महीना बीत चुका था और आठवाँ शुरू हो चुका था।

मुझे देखकर उन्होंने दो घोषणाएँ की थीं-
1. आप जिस मकान में रहते हैं ,वह गाय -भैंसों के रहने की जगह है,
2. आप वहाँ आठ महीना से ज्यादा नहीं रहेंगे।

उनकी दोनों ही बातें अक्षरशः सही निकलीं।

आदमी की भविष्यदृष्टि इतनी तथ्यवाही और सुनिश्चित हो सकती है ,इसका इससे बडा॰ प्रमाण क्या हो सकता है !

मनुष्य का आन्तः संसार असाधारण दिव्य शक्तियों का महागार है।इसमें जो जितना पा सकता है , पालेता है।संसार में ऐसे गुणी लोग बहुत नहीं हैं ,जो इन दिव्यताओं से समय - समय पर हमारा साक्षात्कार करा देते हैं ।
दृष्टि की भी अपनी एक विशेषता है। जब हम पहाड॰ की तलहटी से उसके आसपास जो देखते हैं ,पहाड॰ की ऊँचाई से वे चीजें ठीक वैसी ही और उतनी ही नहीं दिखाई देतीं।यदि हम पहाड॰ के नीचे का ही नजारा देखकर चल दिए होते और कोई उँचाई से दीखते परिदृश्य का चित्रण करता तो ऐेसे लोग भी जरूर निकल आते जो उनकी बातों को नकार देते। वायुयान से यदि पृथ्वी को देखें तो पूरा नजारा और भी अधिक विराटता में खुल जाता है। चाँद से पृथ्वी ठीक वैसी ही दिखाई नहीं देती , जैसी जमीन से।
आइन्स्टाइन ने स्वयं से यह प्रश्न किया था इस विराट ब्रह्माण्ड में हर छोटी - बडी॰ गतिचेतना किसी नियम से परिचालित है।इसका लघुतम भी अपार शक्तियों का पुंज है।
कृष्ण ने जब अपना विराट रूप अर्जुन को दिखाया  तो उसके पहले उन्होंने अर्जुन को वह दृष्टि प्रदान की जिससे वह विराट को देखने में सक्षम हुआ -
 

न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ,
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्।
( अर्जुन तू समान्य आँखों से मुझे नहीं देख पाएगा , मैं तुझे अपने योगैश्वर्य सम्भूत रूप - दर्शन के लिए दिव्यदृष्टि देता हूँ। )

तब अर्जुन ने कृष्ण के विराट स्वरूप का साक्षात्कार करते हुए महाभिभूत शब्दों में कहा -


पश्यामि देवांस्तवदेवदेहे ,सर्वास्तथा भूतविशेषसंघान,
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ -मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान।।
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रण- पश्यामित्वां सर्वतोनन्तरूपम् ।

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं -पश्यामि विशवेश्वर विश्वरूप।।
( हे देव ! मैं आपके शरीर में समस्त देवों , भूत समुदायों, कमलासनस्थ ब्रह्मा, महादेव, सम्पूर्ण ऋषियों एवं दिव्य नागों को देखता हूँ। हे विश्वेश्वर !आपको अनेक भुजा , बाहु , उदर, नेत्रों से युक्त अनन्त के रूप में देखता हूँ। न आपका कोई आदि देखता हूँ , न मध्य , न अन्त ! )
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