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Monday, March 12, 2012

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 107


याद आता है गुजरा जमाना 107


दमण के सागरपुत्रों की कथा



मदनमोहन तरुण

                 

दमण की आबादी उनदिनों बहुत कम थी । करीब - करीब लोग एक -दूसरे को जानते थे, यदि जानते नहीं, तो पहचानते अवश्य थे।कुछ दिनों बाद तक दमण के विभिन्न तबकों के लोगों से मेरा भी परिचय हो गया।
एक दिन वहाँ के माछी मोहन भाई टंडेल ने हमें सपरिवार पूर्णिमा के दिन नौका - विहार का निमंत्रण दिया। भला हम कब रुकने वाले थे ! उनकी नयी मशीनबोट थी। टहापोह झझकारती हुई चाँदनी रात थी। विशाल चन्द्रबिम्ब सागर के भीतर से निकल रहा था। उसकी अपरिमित रूपराशि से मुग्ध सागर के हजारों -हजार ज्वार अपनी हथेलियाँ ऊपर की ओर उठाए चाँद की ओर भागे चले जा रहे थे। आकाश के तारों का प्रतिबिम्ब सागर तल में ठीक ऐसा लग रहा था ,जैसे किसी पहाडी॰ शहर से नीचे समतल मे बसा बिजली की रोशनी से जगमगाता कोई शहर दिखाई देता है। सचमुच गजब की रात थी वह। ऐसी रात जो जिन्दगी में कभी - कभी आती है।
मोहन भाई का पूरा परिवार और हमलोग नौका पर सवार हो गये।गरुड॰ की तरह अपनी चोंच उठाए नाव सागर में उडा॰न - सी भरती निकल चली। हम  करीब तीस - चालीस किलोमीटर समुद्र के भीतर चले गये। बच्चे कल्लोल कर रहे थे और सागर के ज्वारों को भी हमलोगों से खेलने में मजा आ रहा था । उन्होंने हमें पूरी तरह भिगा दिया था। तट से दूर , बीच सागर में जहाँ चारों ओर पानी के अलावा और कुछ भी नहीं था। इस सम्मोहन में घंटों बीत गये। आने की इच्छा नहीं होती थी ,परन्तु हम ठहरे इंसान ,हमारा और लहरों का हमेशा साथ कहाँ ! आखिर हमें सागर से विदा लेना ही पडा॰। मोहन भाई ने हमें तुरत घर लौटने नहीं दिया । वे हमें अपने घर ले आए। कुछ देर हम उस सम्मोहन भरी यात्रा की याद करते रहे। मोहन भाई ने अब हमें अपना घर दिखाया। बाहर से साधारण दिखनेवाला घर भीतर से इतना सम्पन्न होगा , यह हमने सोचा भी नहीं था।

दमण के मछुआरे सामान्यतः आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं।
उनके घरों में आधुनिक जीवन की सुविधा के वे सारे सामान देखे जा साकते हैं जो  नगरों के सम्पन्न परिवारों के पास होते हैं। परन्तु , इस सम्पन्नता के लिए उन्हें कडा॰ संघर्ष करना पडा॰ है।  जब मैने मोहन भाई की सुविधा सम्पन्नता की सराहना की तो उन्होने दमण के माछियों के अतीत की याद करते हुए कहा-आज दमण के माछियों में आप जो सम्पन्नता देखते हैं वह सदा ऐसी ही नहीं थी ।

यहाँ के माछी बहुत गरीब थे।
समुद़ ही उनकी खेती था। पुरुष समुद़ से मछली पकड॰ कर लाते और स्त्रियाँ उसे बाजार में बेचने जाती थीं। जाल और रस्सी सब हम अपने हाथ से बनाते थे। पहले जाल सन की रस्सी से बनाए जाते थे। आज की तरह नायलोन की तैयार रस्सियाँ नहीं मिलती थी। और अगर मिलती भी तो इतनी महँगी कि हम उसे खरीद नहीं सकते थे। सन के साथ ही उन दिनों खजूर के पत्तों से भी रस्सी बनाई जाती थी।यह रस्सी मजबूत होती थी। इसका उपयोग नाव को बाँधने और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता था। पहले मछुआरे दीव और ओखा तक मछली पकड॰ने जाते थे। नाव में तीन महीने के लिए खाने - पीने की सामग्री रख ली जाती थी। इसके साथ ही नाव में ढेर सारा नमक रख लिया जाता था ताकि उसमें पकडी॰ गयी मछिलयाँ अधिक दिनों तक सुरक्षित रखी जा सकें। यात्रा के पहले नारियल डाल कर समुद़ की पूजा की जाती थी , ताकि उनकी यात्रा सकुशल सम्पन्न हो। उन दिनों विकसित बोट नहीं थे । आजकल तो भयंकर तूफानों में भी नौका को समुद़ में ले जाना आसान हो गया है। पहले मई महीने तक सागर तूफानी हो जाया करता था। तबसे करीब तीन महीने , नारियलीपू्र्णिमा तक , समुद़ में जाना बन्द हो जाता था।
उन दिनों नाव किसी मालिक की होती थी। अन्य छह - सात लोग उसके सहायक होते थे जिन्हें पन्द्रह रुपया महीना तथा भोजन दिया जाता था। मछली पकड॰ने का काम सहकारी स्तर पर किया जाता था। उनदिनों मछली एक ओर सिलवास और दूसरी ओर सूरत
 और बम्बई तक बिकने जाती थी। पोर्तगीजों के समय तक दमण के मछुआरों की आर्थिक हालत खराब बनी रही।

1961 में जब दमण स्वतंत्र हुआ , तब से वे लोग मछली पकड॰ने दुबई तक जाने लगे। मछली पकड॰ने के साथ - साथ वे अन्य व्यापार भी करने लगे। वे यहाँ से चाँदी के बदले दुबई से सोना लाने लगे। सोना जहाज के निचले तल्ले में रख कर लाया जाता ताकि उस पर किसी की नजर न पडे॰। इन पंक्तियों का लेखक जब दमण में था तब रात में करीब - करीब हर घर से धम- धम की आवाज आती रहती। यह सिलसिला रातभर चलता रहता। लगता जैसो कोई कठोर चीज हथौडे॰ से पीटी जा रही हो। पूछने पर लोगों ने बताया कि सोने के बिस्कुटों पर से दुबई की मुहर मिटाई जा रही है तकि इसे भारत के बाजार में उसे आसानी से बेचा जा सके। उस समय तक दमण सोने की तस्करी का बहुत बडा॰ केन्द्र बन चुका था।

मोहन भाई ने अपनी बात आगे बढा॰ते हुए कहा -यहाँ से अठन्नी -चवन्नी ले जाने में भी अच्छा मुनाफा मिलता था। दुबई में भारत के नौ रुपये का दस मिलता था। जब मछुआरों के जहाज दमण से बाहर काफी दिनों तक रहने लगे तो सरकार को शंका हुई। सरकार अब जहाजों के आने - जाने का हिसाब रखने लगी। समय - समय पर धर - पकड॰ भी होने लगी। ऐसे में मछुआरों ने एक अलग रास्ता निकाला। वे आधी दूरी तक समुद्र में अपनी नाव से जाते और उधर दुबई के व्यापारी आधी दूरी तक अपना माल उन तक पहुँचा देते। इस तरह नावों के लम्बे समय तक बाहर रहने की शंका का निवारण हो गया और उनका व्यापार खूब फलता - फूलता रहा।

बडी॰ चीजों के साथ टंडेल यहाँ से लहसुन ले जाते और उसके बदले में वहाँ से लौंग ले आते जो भारतीय बाजार में लहसुन से काफी महँगा बिकता था। आजादी के काफी पहले तक दमण में अरब से आनेवाले जहाजों में खजूर के बोरे आते थे। एक बोरे में चालीस किलो खजूर आता था। उन्हीं बोरों में से कुछ में सोना भी आता था। पोर्तगीज सरकार इस हेराफेरी से परिचित नहीं थी। स्वतंत्रता के पश्चात सरकार ने माछियों को नाव खरीदने के लिए कर्ज देना आरम्भ किया। इस राशि से वे मशीन बोट खरीदते थे तथा दुबई जाकर वह मशीन बेच कर उसमें विदेशी मशीन लगवा लेते थे। कुछ लोग दो मशीनें भी लगवा लेते।

दुबई से सागरतट पर आनेवाले सामानों को तुरत ठीक जगह पर पहुँचाने की सुनिश्चित व्यवस्था थी। एक खेप के लिए मजदूरों को बीस रुपये मिलते थे। अगर किसी ने पाँच बार सामान पहुँचाया तो उसे सौ रुपये मिल जाते थे। सामानों को ठीक जगह पर  रखवानेवाले और उसका हिसाब -किताब रखनेवाले को मैनेजर कहते थे। उन्हें दो से लेकर पाँच हजार रुपये महीना मिलता था। तस्करों के ड्राइवरों को पाँच हजार रुपये माहवार के साथ मकान , भोजन एवं विलासिता की सारी सामग्री उपलब्ध कराई जाती थी , क्योंकि वे उनके सबसे नजदीकी राजदारों में थे और खतरा भी उठाते थे।


आजादी के पाँच वर्षों तक भारत सरकार ने उनके व्यवसाय पर कोई बन्धन नहीं लगाया न कोई टैक्स लिआ। १९६१ से १९६८ तक दमण में तस्करी का व्यापार खूब चला।

१९६९ में सरकार ने रेड डाला जिसमें करीब एक करोड॰ रुपये का सामान पकडा॰ गया। पुलिस के लोगों ने भी इसका भरपूर लाभ उठाया। किसी- किसी घर का तो पूरा सामान उठा लिया गया। पुरुष घर छोड॰ कर भाग गये। कुछ घरों में तो केवल स्त्रियाँ ही रह गयीं। सामानों की धरपकड॰ सर्वथा अनौपचारिक रूप में हुई जिसकी कोई लिखा - पढी॰ नहीं की गयी थी। इस रेड के बाद दमण की जनता किंकर्तव्यविमूढ॰ हो गयी। उसे अबतक इसका बोध नहीं था कि दुबई से सोना लाकर उसका व्यापारिक उपयोग करना एक अवैधानिक कृत्य है। परन्तु इस धरपकड॰ से वह समझ नहीं पा रही थी कि वह अपनी रोजी - रोटी का नया जरिया क्या अपनाए ?

कहते -कहते मोहन भाई टंडेल थोडी॰ देर रुके , फिर उन्होंने मानो कुछ याद करते हुए कहा - दमण के माछियों में धनजी भाई और कांजी भाई की चर्चा आवश्यक है।जब दमण के अन्य माछी गरीबी की जिन्दगी बिता रहे थे, तब उनके पास चार बडे॰ - बडे॰ जहाज थे। इन चार जहाजों के अलावा अन्य दो छोटे - छोटे जहाजों से जो आमदनी होती थी उसे वे अपनी बेटियों के बीच बाँट देते थे। कांजी भाई बडे॰ साहसी थे। उन्होंने हाथ से चलाई जानेवाली नाव से अफ्रीका तक की यात्रा की थी। उनकी धनाढ्यता का कारण उनका अतुल साहस ही था। यही साहस आगे चलकर दमण के अन्य मछुआरों में भी जागा और लक्ष्मी उन पर भी प्रसन्न होकर उनके घरों में प्रविष्ट हुईं।

 अबतक भाभी जी , मोहन भाई की पत्नी, खाने की थाल लेकर आगईं।भोजन में भात के साथ सेंकी हुई और रसदार मछली थी।देख कर मोहन भाई मुस्कुराए। मैं इसका करण जानता था। सवेरे सब्जी मार्केट में मैं जब भी सब्जी खरीदने जाता वे हँसते हुए कहते 'साहब आप केवल घास खाता है?' घास अर्थात सब्जी। भाभी जी ने भोजन की थाल के साथ फेनी शराब की एक बोतल भी रख दी। भला इसके बिना अतिथि का स्वागत कैसे पूरा हो सकता है! दमण में बच्चे को पैदा होते ही ब्राण्डी की पहली घुट्टी दी जाती है। काजू और फेनी गोवा ,दमण की अपनी शराब है। भोजनादि कार्य समाप्त कर हमने चलने की अनुमित चाही तो मोहन भाई हमें आपनी कार से घर तक छोड॰ आए।

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याद आता है गुजरा जमाना 106

दमण – दर्शन - 1 ( 1969 – 1979  का दमण )

मदनमोहन तरुण



रेस्ट हाउस में सबेरे का नाश्ता समाप्त करते -करते दिन के दस बज चुके थे।तैयार होकर करीब ग्यारह बजे तक मैं शहर की ओर निकल पडा॰।

आगे के प्रथम चौराहे के पास ही पुलिस स्टेशन है और उसके ठीक सामने ,छोटा -सा , परन्तु खूब साजा -सँवरा नानी दमण का  मारकेट। मुख्यतः विदेशी सामानों से भरा बाजार। यहाँ आवश्यकता और शौक की चीजों की विविधता है। इस मारकेट में अन्दर प्रवेश कर इसकी परिक्रमा की जा सकती है। मार्केट से नीचे उतरें तो हरी - हरी सब्जियों की दुकानें । ठीक उसके सामने टैक्सी स्टैण्ड।वहीं पर एक पान की दुकान। तब दमण में बहुत मामूली होटल थे। एकाध। मेरे देखते -देखते नजीर भाई ने अपनी माँ के नाम पर खारी वाड की ओर भव्य 'रौशन मंजिल' बनवाया। उसी की पहली मंजिल पर होटल बना ,जिसमें  समय - समय पर बालीवुड के सितारे रुका करते थे। इसी भवन की तीसरी मंजिल पर मैं अपने परिवार के साथ करीब दस वर्षों (१९ ६९ से १९७९ जून) तक रहा। इसी भवन के पास के सांस्कृतिक आयोजनों में कई बार बालीवुड के गायक अपने कार्यक्रम दे चुके हैं। यहाँ से जरा आगे नजीर भाई ने अपनी पत्नी के नाम पर शमा टाकिज बनवाया था। दमण में करीब हर चार या पाँच दुकान के बाद एक बार है। आबादी का बडा॰ भाग फेनी और काजू नाम की शराब पीता है, परन्तु अपने इस लम्बे प्रवास के दौरान  शायद ही  किसी को बहकते या लड॰खडा॰ते देखा हो। सच पूछिये तो गुजरात के लोगों के लिए दमण का यह सबसे बडा॰ आकर्षण है। ड्राई गुजरात को वे यहाँ गीला करते है।शनिवार और रविवार को यहाँ ऐसे सैलानियों की अचछी भीड॰ जमा होती है। फेनी और काजू रम के अलावा देसी व्हिस्की ,वाइन और बियर , जो बाहर की अपेक्षा थोडे॰ सस्ते है ,यहाँ के मुख्य आकर्षणों में हैं।

पुलिस स्टेशन से उत्तर दिशा की ओर चलें तो आगे चल कर यहाँ की जेटी है, जहाँ पोर्तगीजों के समय में उनके माल से लदे जहाज रुका करते थे। यह जेटी नानी दमण के १७हवीं सदी में निर्मित ,संत जेरोम के विशाल किले की बाहरी गोद में है। संध्या   समय यहाँ अच्छी भीड॰ जमा होती है। इस स्थान का सबसे बडा॰ आकर्षण है , दमण गंगा। यहीं इस नदी का महासागर से मिलन होता है और इसी मिलनबिन्दु पर बसा है यह छोटा , किन्तु  ऐतिहासिक शहर ।  इसी नदी के नाम पर  इस शहर का नाम पडा॰ 'दमण' यह नदी अपने प्रवाह से दमण को दो भागों में विभाजित करती है। एक भाग का नाम है नानी दमण और दूसरे का मोटी दमण। मोटी दमण में ही समस्त सरकारी कार्यालय हैं। यही पोर्तगीजों के समय के भव्य चर्च  तथा स्कूल हैं। इन भवनों पर पोर्तगीज कला की गहरी छाप है। इनके भीतर विशाल -विशाल कक्ष हैं। कमरे सामान्यतः एक- दूसरे से मिले हैं। एक कमरे से दूसरे में जाने के लिए अन्य कमरों से होते हुए जाना पड॰ता है। दमण गंगा के दोनों तटों पर जेटी है और पोर्तगीजों के पुराने किले , जो उनके आधिपत्य की निशानियाँ है। मोटी दमण में ही पुराना लाइटहाउस है। मोटी दमण, नानी दमण   की तुलना में एक कोलाहल मुक्त स्थान है। साफ -सुथरी सड॰कों पर चलते हुए लगता है किसी विशाल किले के भीतर घूम रहे हों। यहाँ चारो ओर छतनार वृक्षों की गहन छाया है। उस समय तक नानी दमण से मोटी दमण जाने का एकमात्र साधन थी नाव।तबतक पुल का निर्माण नहीं हुआ था।

नानी दमण में देवका बीच सबसे सुन्दर है। अब उसके पास कई अच्छे होटल खुल गये हैं।प्राकृतिक दृष्टि से भी यह बीच वृक्षावलियों से शोभित और रमणीक है। मोटी दमण में जमपुर बीच तैराकी के लिए लोकप्रिय है। दमण के सागर तटों पर हमने ढेर सारे शंख ,कौडी॰ और सीप जमा किये थे। 

कभी हरिशचन्द्र कल्याण जी धोण्डे ने बताया था - '१९४० में दमण में भयंकर समुद्री तूफान आया था। यह अक्तूबर महीने की पूर्णिमा थी। दो बजे के बाद हवा धीरे- धीरे चलने लगी। फिर तेज वर्षा शुरू होगयी और हवा क्रमशः तूफानी होती गयी। जिमी सेठ की बाडी॰ के अनेकों नारियल के वृक्ष जड॰ से उखड॰ कर ध्वस्त हो गये। हवा और वर्षा रात भर होती रही। लोगों के घर गिर गये। अनेकों घरों के छप्पर उड॰ गये। वापी में तो गोदाम की पूरी छत ही उड॰ गयी। गनीमत है सागर में बहुत उफान नहीं आया, नहीं तो दमण वासियों का जीवन और भी बेहाल हो जाता।

दमण में बाढ॰ का एक विकट दृष्य मैंने भी देखा था। यह बाढ॰ १९७६ में आई थी। सम्भवतः जुलाई का महीना था। उनदिनों मैं खारीवाड के रौशन मंजिल में रहता था। वह दमण का नवीनतम और सबसे ऊँचा मकान था। मै उसकी तीसरी मंजिल पर रहता था। एक दिन तेज हवाएँ चलने लगी और कुछ ही देर में तेज वर्षा होने लगी और धीरे - धीरे हवा ने तूफानी रूप धारण कर लिया। तीन दिनों तक लगातार वर्षा होती रही। सागर पर हर किसी को विश्वास था कि वह पानी को स्वयम में समेट लेगा और दमण वासियों को कोई कष्ट नही होगा। लोग यही सोच कर निश्चिन्त अपने घरों में सो रहे थे। परन्तु रात में करीब तीन बजे जोर - जोर की आवाजें सुन कर लोगों की नींद खुल गयी। जिनके घर नीचे थे , वे पूरी तरह पानी में डूब गये थे। स्वयम रौशन मंजिल का एक तल्ला पानी मे डूबा हुआ था। बाहर सड॰क गायब थीं । सड॰क पानी में डूबी थी। लगता था महासागर दमण शहर की सैर करने आगया है। लोगों की रक्षा के लिए दमण के माछी अपनी नावे पानी भरी सड॰कों पर उतार लाए थे। उसी से एक ओर जहाँ डूबतों को बचाया जा रहा था , वहीं लोगों तक आवश्यकता की चीजें पहुँचाई जा रही थी। दमण के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को भी इससे पहले किसी ऐसी बाढ॰ की याद नहीं थी।

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याद आता है गुजरा जमाना 105

मदनमोहन तरुण

दमण काँलेज में मेरा प्रथम दिन

अगले दिन करीब दस बजे मैं अपना पदभार ग्रहण करने के लिए काँलेज चल पडा॰। कालेज शहर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित था। रास्ते में दोनों ओर खेत थे जिसमें फसलों की हरियाली लहरा रही थी। मै तो पहले से ही वहाँ नौकरी के लिए उत्साहित नहीं था , दूसरे रास्ता देखकर और भी निराशा हुई। जब मै काँलेज पहुँचा तो उसका भवन देखकर और भी निराशा हुई। अभी यह करीब - करीब अर्धनिर्मित अवस्था में था। काम लगा हुआ था। बाहर छात्र - छात्राओं की कल्लोलभरी भीड॰ थी।छात्रों की तुलना में छात्राओं की संख्या अधिक थी और वे छात्रों की तुलना में अधिक सुसज्ज और मुखर थीं। प्राचार्य महोदय के कक्ष के पास पहुँचकर बाहर खडे॰ पीएन को अपने बारे में बताया। वह तुरत भीतर गया और प्राचार्य महोदय से अनुमति लेकर ससम्मान मुझे भीतर ले गया।

प्राचार्य महोदय ने सोत्साह एवं आत्मीयतापूर्वक मेरा स्वागत किया। उनकी आँखों में सौजन्य और सह्रदयता की चमक थी। मुझे अच्छा लगा । मैंने पदभारग्रण की औपचारिकता पूरी की। उसके बाद ऊन्होंने मुझे रात्रिकालीन भोजन के लिए आमंत्रित किया। पाचार्य महोदय की उम्र उस समय करीब पचास से ऊपर रही होगी। इस कालेज में आने के पूर्व वे नेपाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवम गणित के विभागाध्यक्ष थे। संध्या समय जब मैं उनके घर पहुँचा तो उनकी श्रीमती जी ने भी  प्रसन्नतापूर्वक मेरा स्वागत किया। मुझे बहुत अच्छा लगा। बाद जब मेरा परिवार भी मेरे साथ आगया तो उनसे मेरी घनिष्ठता और भी गहन होगयी।

संध्या समय मेरे विभाग के बारे में सांकेतिक रूप से उन्होंने जो बताया वह बहुत उत्साहजनक नहीं था।मेरे लिए जटिल परिस्थितियों का सामना करना कभी बहुत कठिन नहीं रहा है। मैं समय के अनुसार अपना कर्तव्य निर्धारण कर लेता हूँ।

मैं ज्यादातर भीतर की दुनिया में रहनेवाला प्राणी हूँ। मेरा बन्द कमरा बाहर के संसार से कहीं अधिक विशाल और आकर्षक रहा है। यहाँ मैं अपना समय अध्ययन में तो लगाता ही हूँ ,उसके अलावा यहाँ मैं अपनी बन्द अँखों के पथ से नये - नये संसारों की यात्रा करता रहता हूँ। यहाँ बैठे – बैठे मैं न जाने कितने लोकों की यात्रा करता रहा हूँ। अझात संसार में नजाने मेरे कितने आत्मीय मित्र हैं जिनके साथ मैं अपना अधिकतम समय बिताता हूँ।

कुलमिलाकर यह मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन था। भारत सरकार की सेवा में प्रवेश का यह मेरा प्रथम दिन था। मेरे स्थान और पद बदलते रहे ,परन्तु केन्द्रीय सरकार के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में मैंने अगले पैतीस वर्ष व्यतीत किए और अपने पद की गरिमा को अपनी सतत समर्पित सेवा से समुज्वल बनाए रहा। मेरा यह आत्मतोष ही मेरी सबसे बडी॰ उपलब्धि है।