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Wednesday, September 28, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 67

याद आता है गुजरा जमाना 67

मदनमोहन तरुण

घेरे के बाहर

हिन्दी के विवादास्पद उपन्यास ‘घेरे के बाहर’ के लेखक द्वारका प्रसाद जी रॉची में ही रहते थे।उन दिनों वे ‘नर – नारी’ और ‘हमारा मन’ नाम की दो अनूठी पत्रिकाओं का सम्पादन - प्रकाशन कर रहे थे। यह हिन्दी में सेक्स और मनोविज्ञान की प्रत्रकारिता के क्षेत्र में पहला गंभीर प्रयास था जिसे पाठकों ने पढ़ा और सराहा।द्वारका प्रसाद जी को अन्य लेखकों ने विजातीय बना रखा था क्योंकि उनके उपन्यास का विषय था भाई - बहन के बीच सेक्स – सम्बन्ध।’घेरे के बाहर’ में इस विषय के पक्ष में दुनिया भर के ऐसे सम्बन्धों का उदाहरण देकर इसकी वकालत की गयी थी।द्वारका प्रसाद जी इन चीजों से बेपरवाह अपने परवर्ती साहित्य में भी अपनी बातें निर्भीकतापूर्वक रखते रहे। कहा जाता है कि यह द्वारिका प्रसाद जी के निजी जीवन से सम्बद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास में कथा के विकास पर ज्यादा जोर न देकर इस सम्बन्ध को जायज ठहराने की कोशिश अधिक की गयी है।

इस उपन्यास के चर्चित होने का मुख्य कारण इसका विषय था। उपन्यास कला की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण उपन्यास नहीं कहा जा सकता किन्तु हिन्दी में यह एक अनूठा और साहसपूर्ण उपन्यास है।

साहित्य हर विषय पर विचार करने के लिए खुला मैदान है।

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