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Friday, August 19, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 48

याद आता है गुजरा जमाना 48

मदनमोहन तरुण

कभी खिले हो ! 48

कभी खिले हो

बियावान जंगल के

उनमत्त गंध - व्याकुल

फूल की तरह !

कभी ज्वारिल

तरंगों की तरह

उमडे॰ हो

कैमरा , प्रेस , रेडियो ,टीवी

से

दूर

सागर की तरह !

कभी चहक उठे हो

पक्षियों की तरह,

गुलाबी भोर की

छुवन से व्याकुल,

हवा के हल्के स्पर्श से

स्पंदित

आह्लादित

शहर के बाहर

की अनजान दूरियों में !

कभी झड॰ पडे॰ हो

सुनसान

घाटियों में,

निर्बाध

उच्छल

उन्माद के निर्झर की तरह !

कभी उमड॰ पडे॰ हो

भविष्य - रहित

अनाम

दिशाओं की ओर !

मैं अपने भीतर की यात्रा पर था।एक उल्लसित उत्सवपूर्ण यात्रा पर ! अपने आप से यह मेरी नयी पहचान थी। मैं एक विशाल पक्षी की तरह कभी गरजते सागर के ऊपर उडा॰न भरता , कभी किसी विशाल पर्वत की सबसे ऊँची चोटी से दुनिया का नजारा करता। जीवन के इस जादूई स्पर्श ने मुझे क्या - से - क्या बना दिया था ! मेरी लेखनी में लगता था जैसे किसी ने नयी और रंगीन स्याही भर दी थी और मै जीवन के उत्सव को उसमें उतारता चला जा रहा था ताकि मैं औरों के उत्साह और सपनों में भी ऐसे ही रंग भर सकूँ।

Copyright Reseved By MadanMohan Tarun

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