याद आता है गुजरा जमाना 47
मदनमोहन तरुण
शब्दब्रह्म
बाबूजी की निषेधात्मक टिप्पणियों का मेरे व्यक्तित्व पर बहुत घातक प्रभाव पड॰ रहा था।मेरा आत्मविशवास , मेरा मनोबल सबकुछ संकट में था। मैं स्वयं को सम्हाले हुए था , किन्तु कहीं भीतर से बुरी तरह टूट भी रहा था। ऐसे में कहीं - न - कहीं से मुझे भावात्मक सहयोग की आवश्यकता थी।
अबतक मैं जहानाबाद कालेज का विद्यार्थी था। कालेज के एक समारोह में मित्रों के आग्रह पर मैंने अपनी एक कविता पढी॰। उसे सुन कर काँलेज के तत्कालीन प्राचार्य श्री छोटे नारायण शर्मा जी बहुत प्रभावित हुए। श्री शर्मा जी अँग्रेजी साहित्य के विद्वान और अरविन्द दर्शन के गहन अध्येता थे। बाद में उन्होंने काँलेज की नौकरी छोड॰ दी और अरविन्द आश्रम पाण्डिचेरी चले गये। वहीं से वे अरविन्द दर्शन के लिए व्याख्यान देने देश - विदेश में जाया करते थे। काँलेज जीवन के करीब तीस वर्ष बाद जब मैं मसूरी में था , तब वे जर्मनी से लौटते हुए मुझसे मिलने आए थे । उनका मुझ पर सतत स्नेह बना रहा। जहानाबाद एस. एस. कालेज में कविता मेरी सुनने के बाद उन्होंने अपने आवासस्थान पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। उसमें कई प्रबुद्द जन उपस्थित थे। उन्होंने मुझे अपनी कविताएँ सुनाने को कहा। मैं वहाँ करीब घंटे भर अपनी कविताएँ सुनाता रहा।उससे लोग बहुत प्रभावित हुए।मेरी कविताओं में मनुष्य के साथ पशु -पक्षियों , पेड॰ -पौधों और चल - अचल के दुख- दर्द , उनकी आशा -आकांक्षाओं का चित्रण होता था। मैं प्रकृति के माध्यम से जीवन के आशावादी विचार प्रस्तुत करता था। मैं कोरी भावुकता का कवि नहीं था।मेरा वैचारिक निर्माण एक हद तक उपनिषदों के अध्ययन से हुआ था।शर्मा जी को सम्भवतः यही बात ज्यादा पसन्द आई। उस दिन उन्होंने मुझे महर्षि अरविन्द कृत महाकाव्य 'उर्वशी' एवम हिन्दी के छायावादी कवि श्री सुमित्रानन्दन पंत जी की सुप्रसिद्ध कृति 'पल्लव' देकर पुरस्कृत किया।उनकी इस प्रशंसा ने बाबूजी के आघातों से छलनी मेरे हृदय के जख्मों पर कोमल हाथों से लगाए मरहम का काम किया। एकदिन जब मैंने उनसे पूछा कि क्या कविता लिखकर मैं कोई गलती कर रहा हूँ, तब उन्होंने मुझसे पूछा ' आखिर ऐसे विचार तुममें आए कहाँ से ? तब मैंने उन्हें बताया कि इस विषय पर मेरे प्रति मेरे पिताजी के विचार कैसे हैं। सुनकर वे थोडी॰देर चुप रहे, फिर बोले - कवित्व का वैभव ईश्वर सब को नहीं देता।वह उसके लिए उपयुक्त लोगों का चुनाव करता है। तुम उन सौभाग्यशाली लोगों में हो जिसका उसने इस कार्य के लिए चुनाव किया है। इस बात को याद रखना।'
मैं अपने प्राचार्य शर्मा जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे मेरे बहुत बडे॰ मनोद्वंद्व से बचा लिआ।
मुझपर बाबूजी ने अपनी निर्मम टिप्पणीयाँ उस उम्र में की थी जब आदमी को प्रोत्साहन और सही मार्ग - दर्शन की बहुत आवश्यकता होती है। किन्तु बाबूजी की टिप्पणियों से मुझे एक बहुत बडा॰लाभ हुआ। मैंने तय किया कि ऐसा व्यवहार मैं अपने बच्चों से कभी नहीं करूँगा। ऊनपर अपने विचार नहीं थोपूँगा और उन्हें उनकी स्वाभाविक रुचि की दिशा में बढ॰ने में पूरी सहायता करूँगा और कभी किसी की आलोचना करनी हो तो दूसरों की उपस्थिति में नहीं करूँगा।अपनी नौकरी के सिलसिले में ऐसे अवसर कईबार आए जब मुझे अपने अधीनस्थ अधिकारियों को कडे॰ शब्दों में सचेत करने की आवश्यकता हुई। परन्तु यह सब मैंने पूरी शालीनता और दृढ॰ता से अपने कार्यालय के एकांत में किया।इसका मुझे हमेशा सुपरिणाम मिला। अपने बच्चों के प्रति भी मैंने अपने निर्णय का सदा पालन किया और और इस बात का सदा खयाल रखा कि मैं उनकी भावनाओं को अनावश्यक रूप से आहत न करूँ।। मुझे उसका सुपरिणाम ही मिला। अपने बेटे - बेटियों के प्रति मेरा सम्बन्ध सदा मित्रों जैसा रहा। इस कारण वे मुझसे किसी भी समस्या पर खुल कर विचार - विमर्ष करते रहे । जो थोडी॰ मुझसे कमी रह गयी, उसे मेरी पत्नी ने पूरा कर दिया।
किसी भी व्यक्ति के सम्मान को आहतकर हम उसकी घृणा के अलावा और कुछ भी नहीं पा सकते।
इनके अलावा मैं अमेरिका के सुप्रसिद्ध आशावादी और व्यक्तित्व - विन्यासक लेखक ओरिसन स्वेट मार्डन की पुस्तक How to get what you want का आभारी हूँ जिसने टूटन के कगार पर खडे॰ मेरे व्यक्तित्व को क्षत - विक्षत होने से बचा लिआ। एक सड॰क से गुजरते हुए पुरानी पुस्तकों के एक विक्रेता के पास मैंने यह पुस्तक देखी। उठा कर कुछ पन्ने पलटे ही कि लगा कि यह पुस्तक मेरे लिए अपरिहार्य है। मैंने उसे तत्काल खरीद लिआ।वह पुस्तक नहीं थी , उसकी एक -एक अभिव्यक्ति विद्युत तरंगों से भरी थी।उसने मेरे हर शिथिल और आहत स्नायु को तरंगमय जागृति से भर दिआ। शब्द इतने प्रभावशाली हो सकते हैं , यह मेरा पहला और अनूठा अनुभव था।मैं उस रात एक क्ष ण भी सो नहीं सका। अपने कमरे में टहलता रहा। मेरी सारी कूंठाएँ नष्ट हो गयी और सारे अँधियारे ज्योतित होगये। मन के भीतर न जाने कितने द्वार खुल गये और मुझे अपने विराट व्यक्तित्व का साक्षात्कार हुआ।अ ब मैं पर्वत शिखरों से उडा॰न भरता हुआ आसमान की ऊँचाइयों तक जा सकता था।एक सुनहली रात। उसके बाद मैं किसी से आहत नहीं हुआ।मैं अब अपनी लघु सीमाएँ तोड॰ कर बाहर एक नई दुनिया में आ चुका था, जो मेरी और केवल मेरी दुनिया थी।मेरा सुनिशचित मत है कि यह पुस्तक कि सी भी उम्र में पढी॰ जा सकती है और इसकी असाधारण उन्नायक शक्ति का अनुभव किया जा सकता है।
ओरिसन स्वेट मार्डन
ओरिसन स्वेटमार्डन का जन्म 1850 में अमेरिका के थार्टन गोरे,न्यू हेमिस्फेयर के एक किसान परिवार में हुआ था। जब वे मात्र तीन वर्ष के थे तभी उनकी बा ईस वर्षीय माता मार्था मार्डन का देहान्त हो गया ।तब से स्वेट मार्डन और उनकी दो बहनों का पालन - पोष ण उनके पिता लियुइस ने किया जिनके पास खेती और शिकार को छोड॰कर जीवन व्यतीत करने का और कोई साधन नहीं था। जब मार्डन केवल सात वर्ष के थे तभी उनके पिता का भी देहान्त हो गया। तब से मार्डन और उनकी बहनों का पालन एक के बाद अन्य कई अभिभावकों द्वारा हुआ। वे अपनी जीविका के लिए मजदूरी करते रहे।
सैमुयल स्माइल की पुस्तक ' Self Help' ने उन्हें नूतन जीवन दृष्टि दी। उन्होंने तय कर लिया कि वे किसी भी कीमत पर अपने जीवन की स्थितियों में परवर्तन करेंगे।वे अपनी उन्नति के लिए सतत प्रयत्नशील रहे और 1871 में उन्होंने बोस्टन विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उनके विकास का सिलसिला चल निकला। 1881 में उन्होंने हारवर्ड विश्वविद्यालय से एम.डी. की डिग्री तथा 1882 में एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की ।इसके साथ ही उन्होंने बोस्टन स्कूल आँफ ओरेटरी में भी अध्ययन किआ।अपने अध्ययन काल में उन्होंने केटरिंग एवं होटेल मेनेजमेंट में काम करते हुए अच्छी कमाई की।इसीसे उन्होने जमीन खरीदी और बाद में कई होटलों के मालिक बने और उनका सफलता पूर्वक संचालन किआ ।अबतक कोई सोच भी नहीं सकता था कि मार्डन आनेवाले दिनों में प्रेरक पुस्कों के महान लेखक बनेंगे। 1892 में उन्हें अपने व्यवसाय में जोरों का झटका लगा और उन्हें एक होटल में मैनेजर की नौकरी करनी पडी॰।
उन्हें एक घर की छत के कमरे में सैमुअल स्माइल की पुस्तक 'Self help' मिली।इस छोटी - सी पुस्तक ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। इसके प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंनेलिखा -' इस छोटी - सी पुस्तक के घर्षक प्रभाव ने मेरे भीतर की प्रसुप्त चिनगारी को जाग्रत कर दिआ।'उन्होंने इसी समय तय किया कि वे अमेरिका के सैमुअल स्माइल बनेंगे और इसमें कोई सन्देह नहीं कि उनकी यह महत्वाकांक्षा कहीं बढ॰ - चढ॰ कर रंग लाई। अब उन्होंने अपने आशावादी विचारों को लिखकर संकलित करना आरंभ कर दिआ।यही विचार उनके आनेवाले वर्षों में खूब फले-फूले और अपने नूतन विचारधारा के आशावादी प्रोत्साहक विचारों से न जाने कितनों के भीतर की प्रसुप्त चिनगारी को धधका कर उन्होंने नई जिन्दगी दी ।
माडर्न की पहली पुस्तक ' पुशिंग टु द फ्रंट' का प्रकाशन 1894 में हुआ , जिसे पाठकों ने हाथों-हाथ अपना लिआ। 1897 में उन्होंने ' सक्सेस मैगजीन' का प्रकाशन किआ, जिसे व्यापक पाठक वर्ग मिला। 1912 आर्थिक संकट के कारण उन्हें यह पत्रिका बन्द करनी पडी॰ , किन्तु उन्होंने 1918 में पुनः ' सक्सेस' नामकी पत्रिका प्रकाशन किया जो उनके जीवनकाल तक चलती रही और विशाल पाठक वर्ग में समादृत रही। स्वेट मार्डन की ले खन गति बहुत तीव्र थी। उन्होंने प्रति वर्ष करीब दो पुस्तकें लिखीं।
1924 में कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की पाण्डुलिपियाँ अगले प्रकाशन के लिए छोड॰कर इस महान लेखक ने इस लोक से विदा ली।
स्वेट मार्डन आज भी अपने क्षेत्र के अप्रतिम लेखक हैं।
स्वेट मार्डन की कुछ प्रमुख पुस्तकें -
1. An Iron will
2. Do It To A Finish
3. Be Good To yourself
4. Peace Power In Plenty
5.How To Get what You want
6.Cheerfulness As A Life power
7. The Miracle Of Right Thought
8.He Can Who Thinks He Can
9. Pushing To The Front Volume 1
10 Pushing To the Front Volume 2
11. Kill worry And Live Longer
12.Makng Life A Masterpiece
13. The Hour Of Opportunity
14. Stories From Life :A Book For Young People
15. Character :The Grandest Thing Of All
16. How To succeed : Stepping stones To Fame And Fortune
स्वेट मार्डन की पुस्तकें हल्के - फुल्के विकास के माध्यमों पर बल नहीं देतीं, उनमें कठिन जीवन की चुनौतियों एवं आध्यात्मिकता की ऐश्वर्यमय ज्योति है। उनकी वाणी में ओजस्विता और गहराई है , उनके दृष्टांत बहुत ही सटीक एवं विश्वसनीय होते हैं।
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