याद आता है गुजरा जमाना 43
मदनमोहन तरुण
पंडित जवाहरलाल नेहरू - 1
देश के नेताओं में पंडित जवाहरलाल नेहरू मुझे बहुत प्रिय थे । स्वाधीनता संग्राम में ही नहीं ,बाद में भी उनमें युवासुलभ उत्साह बराबर कायम रहा और वे अपनी संतुलित नीतियों के बल पर एक ऐसे देश को भविष्य का ठोस आधार देने में सक्षम हो सके जिसे स्वाधीनता के तुरत बाद के विभाजन , पाशविक साम्प्रदायिक दंगों एवं हताशा ने भीतर से बुरी तरह झिंझोड॰ कर रख दिया था। आज नेहरू जी के आलोचकों की कमी नहीं है, उन्होंने कुछ ऐतिहासिक गलतियाँ कीं, किन्तु मात्र इतने से उनका महत्व कम नहीं हो जाता।इस देश को उनकी देन बहुत बडी॰ है।
पंडित जी का भाषण मैंने कई बार सुना है।उनमें पांडित्य के साथ असाधारण जोश और संतुलन होता था। उनका सम्बोधन घर के उस बुजुर्ग सदस्य की तरह होता था, जिस पर सब का भरोसा था। पंडितजी समय पड॰ने पर मंच से अपनी जनता को डाँटने में भी कोई कसर नहीं छोड॰ते थे।उन्हें सुनने के लिए लाखों खी भीड॰ उमड॰ती , परन्तु उनकी सभाओं में कहीं से कोई 'चूँ' की आवाज भी नहीं आती थी।
यहाँ मैं उनके भाषण और व्यक्तित्व के कुछ विरल प्रसंग रख रहा हूँ जिसे मैं कभी भुला नहीं सकता।
ईस्वी सन ठीक से याद नहीं है।
पटना छात्र आन्दोलन के दौरान बी . एन . कॉलेज के एक छात्र दीनानाथ पाण्डे के पुलिस की गोली का शिकार हो जाने के पश्चात , आन्दोलन और भी उग्र हो गया तथा नियंत्रण के बाहर होकर अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया। बिहार के त्तकालीन वरिष्ठ – से - वरिष्ठ नेताओं ने छात्रों को समझाने की चेष्टा की , किन्तु छात्र मानने को तैयार नहीं हुए। छात्रों ने माँग की कि वे अपना आन्दोलन तबतक वापिस नहीं लेंगे जबतक यहाँ स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरू नहीं आते। इस बीच कुछ और भी छात्र मारे गये तथा आन्दोलन उग्र से उग्रतर होता चला गया। सड़कों पर छात्रों के गिरे खून को चारों ओर से घेर कर उसके पास लिख दिया गया था ‘ यह शहीदों का खून है , इस पर पॉव मत रखिये।’ इस आन्दोलन से बिहार के बुध्दिजीवियों की भी गहरी सहानुभूति थी।कई वरिष्ठ कवियों ने छात्रों के प्रति पुलिस के इस कठोर व्यवहार की आलोचना करते हुए उस घटना पर कविताएँ लिखी थी तथा समाचारपत्रों ने छात्रों के पक्ष में टिप्पणियॉं की थी। स्थिति तब और भी गम्भीर हो गयी जब छात्रों के एकाध दल ने अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए राष्ट्रध्वज जलाया।
अंततः पंडित जवाहरलाल नेहरू पटना आना पडा॰।
मैं पटना से पैंतालिस किलोमीटर दक्षिण जहानावाद में रहता था। युवावस्था में कदम रख रहा था और छात्र आन्दोलन की उत्तेजना मुझ में भी भरपूर थी।पिताजी जब पंडित जी का भाषण सुनने के लिए अपने मित्रों के साथ पटना जाने लगे तो मैं भी साथ चलने के लिए अड़ गया। पटना की उत्तेजक स्थिति को देखते हुए बाबूजी मुझे साथ ले जाने में हिचकिचा रहे थे , परन्तु उन्हें मेरी जिद से समझौता करना पड़ा। हम बारह बजे वाली ट्रेन से पटना के लिए रवाना हो गये। ट्रेन पंडित जी का भाषण सुनने के लिए बेचैन लोगों से खचाखच भरी हुई थी।सब को आशा थी कि पंडित जी छात्रों के ऑसू पोछेंगे और अधिकारियों को डॉट पिलाएँगे। ट्रेन जब पुनपुन स्टेशन पहुँची , तो काले – काले मेघों ने सारा आसमान चारों तरफ से घेर लिया और थोड़ी ही देर मे बादल खूब गरज – गरज कर बरसने लगे। झकोरेदार वर्षा इतनी तेज थी कि हम ट्रेन के कम्पार्टमेंट में भी पूरी तरह भींग गये। पटना पहुँचते ही बाबूजी ने अपने लिए धोती –कुर्ता और मेरे लिए कुर्र्ता - पाजामा खरीदा। भींगे कपड़े झोले में रख कर और नये कपड़े पहन कर हम रिक्शा से गॉधी मैदान के लिए चल पड़े।अबतक वर्षा तो रुक गयी थी ,परन्तु आसमान में बादल अभी भी छाए हुए थे। हम सोचते थे , पता नहीं नेहरू जी आएँ या नहीं आएँ , परन्तु जब हम गॅधी मैदान पहुचे तो लोगों की भीड़ देख कर दंग रह गये। लाखों लोग भींगे कपड़ों में अपने प्रिय नेता को सुनने के लिए चुपचाप बैठे बेचैनी से प्रतीक्षा कर रहे थे। पंडित जी के पहुँचते ही वायुमंडल उनके जजयकार के नारों से गूँज उठा। मंच पर पहुँचते ही पंडित जी ने अपना भाषण आरम्भ कर दिया।लोग पंडित जी से जख्मों पर मरहम की आस लगाए बैठे थे ,परन्तु यह क्या पंडित जी तो जख्मों पर नमक लगाने लगे थे। उन्होंने कहा –‘तीन क्या , अगर तीन सौ विद्यार्थी भी मारे जाते तो मुझे उसका कोई अफसोस नहीं होता।वे लोग , जिन्होंने देश के झंडे को जला कर मुल्क को अपमानित किया , वे किसी भी माफी के लायक नहीं हैं। इस झंडे के लिए न जाने कितने नौजवानों ने अपनी कुर्बानियॉ दीं , जेल गये , लाठियॉं ,गोलियॉ खाईं , यहॉ उसी झंडे को जलाया गया । ’ पंडित जी की इन बातों से विद्यार्थियों के दल से कुछ विरोधी नारे उभरे ,परन्तु पंडित जी ने डॉटते हुए उन्हें ललकारा और कहा कि अगर हिम्मत होतो सामने आकर अपनी बात कहो। यह छुप –छुप कर नारे क्या लग रहे हो ! उस डॉट का तुरत प्रभाव पड़ा और उस गहरी उत्तेजना की स्थिति में भी चारों ओर शांति छा गयी। इसी बीच कुछ फुहारें पड़ने लगी। मंच पर एक अधिकारी छाता खोल कर पंडित जी के पास आ कर खड़ा हो गया । पंडित जी ने बड़े क्रोध में भर कर उस अफसर को छाते के साथ ही अपने पास से करीब – करीब धकेलते हुए ,अलग हटा दिया ।उन फुहारों से कहीं कोई व्यवधान नहीं पड़ा।उनका भाषण चलता रहा।उन्होंने क्रोधपूर्वक कहा –
‘पटना के कॉलेजों में एक नहीं , अगर सौ – सौ ताले भी लगा दिए जाएँ , तब भी मुझे कोई अफसोस न होगा। जो अपने मुल्क का झंडा जलाता है , उसके लिए हमारे दिल में कोई रहम नहीं।’ यह एक असाधारण नजारा था।फुहारें पड़ रही थीं और राष्ट्रनायक अविचल भाव से अपनी युवा पीढ़ी को डॉटे जा रहा था और लाखों की भीड़ चुपचाप सुने जा रही थी। ऐसा असाधारण दृश्य मैंने अपने जीवन में फिर कभी नहीं देखा।परन्तु ,नेहरू जी के इस सम्बोधन से छात्रों को शांति नहीं मिली।छात्रों की आस टूट गयी।परन्तु, झंडा जलानेवाली बात नेहरू जी के व्दारा इस संजीदगी से कही गयी थी कि अब चर्चा मूल विषय से हट कर इसी पर केन्द्रित हो गयी। लोगों को लगा कि अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज को जलाये जाने का कोई औचित्य नहीं था। उसके बाद आन्दोलन बिखर गया और फिर इस स्तर पर कभी संगठित नहीं हो सका।
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