याद आता है गुजरा जमाना 45
मदनमोहन तरुण
श्रीमती इंदिरा गाँधी
पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद के प्रधानमंत्रियों में इंदिराजी का नाम उल्लेखनीय है।इंदिराजी कठिन फैसले लेनेवाली खुले दिमाग की एक साहसी प्रधानमंत्री थीं।पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसी भावुकता उनमें नहीं थी। वे समय आने पर बहुत रुथलेस निर्णय लेने में समर्थ थीं। उनका कार्यकाल बहुत सीमित , विवादास्पद ,किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा।
इंदिरा जी से सम्बन्धित एक घटना मुझे याद आ रही है,जो उनके व्यक्तित्व के उस पक्ष को प्रस्तुत करती है जो अपने निर्माणकाल में था।वे समय की नजाकत और अपने कर्तव्यों को तब भी समझती थीं।
तब इंदिराजी अपनी युवावस्था में थीं।उनकी मोहक सुन्दरता सबको लुभानेवाली थी।
तब पंडित जवाहरलाल राँची आए थे।खादी से मढी॰ जीप एयरपोर्ट से उन्हें लेकर आरही थी।पंडितजी जीप पर खडे॰ होकर हाथजोडे॰ जनता के अभिवादनों का जबाब दे रहे थे। इंदिरा जी ठीक उनकी सीट के पीछे बैठी थीं। एक स्थान पर जीप विद्यार्थियों की भीड॰ से होती हुई आगे बढ॰ने ही वाली थी कि कुछ विद्यार्थियों ने चिल्लाकर कहा- ' हम इंदिरा गाँधी को देखेंगे' , 'हम इंदिरा गाँधी को देखेंगे'।पंडित जी ने जीप रुकवा दी। उनका चेहरा क्रोध से तमतमाकर लाल हो गया था। उन्होंने पीछे मुड॰कर इंदिरा जी की ओर देखा। इंदिरा जी उठकर खडी॰ होगयीं। पंडित जी ने करीब - करीब चिल्लाते हुए कहा - ' लो देखो , देखो , इंदिरा को!' इंदिरा जी ने बडी॰ सौम्यता से मुस्कुराते हुए अपने हाथ जोडे॰ और चारों ओर देखती हुई उसी गरिमा से पुनः बैठ गयीं। भीड॰ में सन्नाटा छा गया और जीप पुनः धीरे - धीरे आगे बढ॰ने लगी।
Copyright Reserved By MadanMohan Tarun
No comments:
Post a Comment