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Friday, August 5, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 34


याद आता है गुजरा जमाना 34

मदनमोहन तरुण

कौन कहता है मैं नाटी हूँ !

मेरी माँ एक प्रखर महिला थी।वह किसी के सम्मान में कभी कोई चूक नहीं करती थी , परन्तु उसे अपने सम्मान का भी उतना ही खयाल रहता था।

एक बार मेरे पिताजी ने उसकी भावनाओं से खिलवाड॰ करने की चेष्टा की ,जिसका उसने उचित उत्तर दिआ।

एक बार बातों - ही - बातों में मेरे पिताजी ने माँ पर टिप्पणी करते हुए कहा - 'आप तो नाटी (छोटे कद की) हैं।'

यह सुनना ही था कि माँ की भवें टेढी॰हो गयीं और ग्रीवा उत्तान। उसने उनकी ओर घूरते हुए कहा - 'कौन कहता है मैं नाटी हूँ। मैं विशाल वटवृक्ष की तरह हूँ, जिसकी शाखाएँ दूर - दूर तक फैली हैं। मेरा एक बेटा दमण में है, मेरी बेटी राँची में और मेरी पोती दिल्ली में है।सभी बडे॰ - बडे॰ पदों पर हैं। और आप ! आप तो ताड॰ के पेड॰ की तरह केवल लम्बे हैं, जिस पर पक्षी को भी छाया नहीं।'

इस उत्तर के बाद माँ ने घूरते हुए पिताजी को देखा और पूछा - ' और आप ! आप कहते हैं मैं नाटी हूँ ?'

इस उत्तर ने पिताजी को निरुत्तर कर दिया। उन्होंने इसके पहले कभी सोचा भी नहीं था कि उन्हें ऐसी स्थिति का भी सामना करना पड॰ सकता है।

मेरी माँ सामान्यतः शांत स्वभाव की थी ,परन्तु जब आरोप गलत हो, या स्वाभिमान पर चोट की गयी हो , तो वह सामनेवले को उसकी सीमाएँ बता देने में कभी चूक नहीं करती थी।

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