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Thursday, April 7, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 27

याद आता है गुजरा जमाना -27

मदनमोहन तरुण

जहानाबाद के वे दिन - 1

जहानाबाद , गया और पटना के ठीक बीच में बसा उनदिनों एक छोटा शहर था। यहाँ से गया और पटना दोनों शहरों की दूरी तीस - तीस किलोमीटर है।आज से पचास साल पहले यहाँ से गुजरने वाली ट्रेनें कोयला और पानी से चलती थीं ।हर ट्रेन यहाँ से आगे की यात्रा के लिए कोयला - पानी यहीं लेती थीं।जहानाबाद को दरधा नदी दो भागों में बाँटती है। इसके दूसरे भाग को 'जहानाबाद कोर्ट' कहा जाता है ,जहाँ उसके सारे महत्वपूर्ण सरकारी कार्यलय हैं। इस पार के रेलवे स्टेशन का नाम भी जहानाबाद कोर्ट है।

यहीं के गाँधी मैदान में उस समय के सारे फुटबाँल मैच खेले जाते थे। मोहन बगान और मुहम्डन क्लब जैसी टीमों की भिडं॰त इसी मैदान में होती थी। मुझे फुटबाल का मैच देखना बहुत पसन्द था।मैं अपने छोटे भाई अजय को साथ लेकर , जहानाबाद से यहाँ तक चलते हुए, करीब दो किलोमीटर की दूरी तय करता था।उस समय मेरी उम्र ग्यारह - बारह साल से अधिक नहीं थी। मैदान के एक सिरे की घास पर बैठे हुए हम दोनों मूंगफली खाते हुए मैच देखा करते थे। अजय की उम्र उस समय नौ साल से ज्यादा नहीं थी।लौटते समय हमदोनों की बहस सामान्यतः ईश्वर के अस्तित्व पर हुआ करती थी और कभी - कभी यह चर्चा इतनी गर्मागर्म होजाती कि हम चलना भूल जाते और रास्ते में खडे॰ होकर बहस करने लगते।

जहानाबाद में उनदिनों बिजली नहीं थी।घरों में लोग किरोसिन तेल से जलनेवाले लालटेन का उपयोग करते थे।बाजार की दुकानों में सामान्यतः पेट्रोमैक्स का प्रयोग होता था। सड॰कों पर जगह - जगह लकडी॰ के खम्भे गडे॰ होते थे , जिनपर चारों ओर शीशे से ढँके बडे॰ -बडे॰ लैम्प होते थे और शाम को एक आदमी इनपर सीढी॰ से चढ॰कर इनके लैम्प में किरासिन तेल भर जाता था । अँधेरा होते ही दूसरा इसे जला जाता ।यह रोशनी सुबह करीब भोर तक रहती थी।यहाँ की सड॰कें सबेरे झाडू॰ से साफ की जाती थीं।

लोगों के घरों में पुराने किस्म के पाखाने थे।जिसे हररोज मेहतर टीन के बडे॰ - बडे॰डब्बों में घर -घर जाकर जमा करते थे और अपने सिर पर उठाकर बाहर ले जाते और एक गाडी॰ पर लाद कर शहर के बाहर एक निश्चित स्थान पर फेक आते थे।यह दृश्य बहुत घिनौना लगता था , परन्तु इसके अलावा उस समय तक कोई अन्य व्यवस्था नहीं थी। बाद में जो मकान बने, उनमें सेफ्टीतैटैंक पाखाने बनने लगे। कुछ वर्षों के बाद सिर पर मल ढोने की प्रथा का विरोध हुआ और हर किसी के लिए घरों में सेफ्टीटैंक पाखाना बनवाना आवश्यक कर दिया गया।

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