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Sunday, April 3, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 25

याद आता है गुजरा जमाना -25

मदनमोहन तरुण

मेरा हीनतम आचरण

हमलोग जहानाबाद के पाठकटोली मुहल्ले में रहते थे।वह किराए का बडा॰ - सा मकान था।हमलोगों का अपना मकान उस समय तक नहीं बना था।माँ सबेरे स्टोब पर बाबूजी के लिए नाश्ता बनाती थी।गेहूँ के आटे का मीठा छिलका।पतला और कुरकुरा। वह बाबूजी को बहुत पसन्द था। वे उसके साथ सामान्यतः परबल की तरकारी खाते और एक किलो दूध पीकर औषधालय जाते थे।यह क्रम नियमित रूप से वर्षों चलता रहा। उस समय तक मेरी किसी बहन या भाई का जन्म नहीं हुआ था'।माँ के साथ केवल मैं ही रहता था। मेरी उम्र आठ साल से ज्यादा की नहीं थी। दादी और दादाजी सैदाबाद में ही रहते थे।मँझिला बाबा परमानन्द जी घर पर शायद ही कभी रहते थे।वे उच्च कोटि के योगी , चिकित्सक और प्राचीन ग्रथों की पाडुलिपियों के महान संग्रहकर्ता थे। वे तबतक बाबूजी के साथ रहे ,जबतक उन्हें भरोसा नहीं हो गया कि बाबूजी अब बीमारियों के बारे में स्वयं ही सही और उच्चकोटि का निर्णय ले सकते हैं। आखिर वे ही तो उनके गुरु थे और सही अर्थों में उन्होंने ही उनके पिता के कर्तव्य का पालन किया था। बाबूजी इस बात को कभी नहीं भूले। हमारे बड॰का बाबा जहानाबाद कभी - कभी ही आते थे। जबतक हमारा अपना मकान बन नहीं गया, तबतक मुझे याद नहीं कि वे यहाँ कभी रुके थे।

जहानाबाद के इस मकान को मैं कभी भूल नहीं सकता ,क्योकि यहीं मुझसे मेरे जीवन का सबसे बडा॰ अपराध हुआ था , जिसके लिए मैं स्वयं को कभी क्षमा नहीं कर सका।

मेरे यहाँ दूध देनेवाला ग्वाला जब उसदिन सबेरे मेरे दरवाजे पर आया तो उसके साथ एक बहुत प्यारा - सा छोटा बच्चा था। वह बहुत सुन्दर कपडे॰ पहने हुए था।उसकी भोलीभाली सूरत कृष्ण कन्हैया जैसी लग रही थी। मैं देर तक उस सुन्दर बालक के चेहरे से अपनी आँखें हटा नहीं सका। थोडी॰ देर बाद मेरे भीतर न जाने कब का, कौन - सा छुपा राक्षस जाग उठा।उस दिन के ठीक एक दिन पहले पिताजी ने मुझे एक चप्पल खरीद कर दिया था।वह मुझे इतना पसन्द आया कि मैंने उसे पहना नहीं। उसे साथ लेकर, सिर के नीचे रखकर सोया। मैं वही चप्पल लेकर घर के भीतर से बाहर आया। अबतक ग्वाला वहाँ से जाने की तैयारी कर रहा था।मैं जल्दी से सीढि॰यों से नीचे उतरा और वह चप्पल उस बच्चे के गाल से छुआभर दिया। बच्चा थोडी॰ देर स्तंभित - खडा रहा, फिर उसकी आँखें आँसुओं की धारा बहाने लगीं और वह बिलख - विलख कर रोने लगा। उसके युवक पिता ने उसे कलेजे से लगा लिया और उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, परन्तु वह रोता ही रहा। उसके आँसू थे कि रुकते ही नहीं थे।मैं मूर्ति की तरह पश्चाताप में खडा॰ रह गया।मुझे अपने अपराध का बोध हो चुका था।ग्वाले ने मुझे कुछ भी नहीं कहा। वह अपने बच्चे को गोद में लिए और माथे पर दूध का बर्तन उटाए चुपचाप चला गया।

उस रात मैं जरा भी सो नहीं पाया। उसकी प्यारी - भोली सूरत और उसकी आँसू बरसाती आँखें मेरे सामने से ओझल नहीं हो सकीं। मैंने तय किया कि कल सबेरे वह जैसे ही मेरे घर पर आएगा, मैं उससे क्षमा माँग लूँगा।उसे अपने हाथों से खिलाऊँगा।परन्तु ,वह दिन कभी नहीं आया।मैने ग्वाले से जब पूछा कि उस बच्चे को लेकर क्यों नहीं आया तो ग्वाले ने बताया कि वह यहाँ आने को तैयार नहीं हुआ। वह घर जाकर बीमार होगया। उसके बाद मैंने ग्वाले से जब भी पूछा ,उसने यही बताया कि वह अब शहर में आना नहीं चाहता।

वह बच्चा तो फिर कभी नहीं आया ,परन्तु उसकी भोली , अपमान से आहत, आँसू बहाती सूरत मेरे भीतर सदा के लिए बस गयी। उसने मुझे जैसे मेरे ही कठघरे में खडा॰ कर दिया।मैं आजतक उस अपराध के लिए खुद को क्षमा नहीं कर सका। उसकी वह सूरत मुझे आजतक तड॰पाती है।

Copy Right Reserved By MadanMohan Tarun

2 comments:

  1. abodh man se huye apradh ko sweekarkar lene ka anubhav aur phir se aisa na ho ye sankalp lena hee gahraee me paithe impression ko clean kar deta hai.

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  2. Kuchha ghatnaayein kabhee peechhaa naheen chhodatee. Ve hmaaree jeevan chetnaa ko bahut ghraayee tak prabhaavit kar detee hain. Yah Ghatnaa mere jeevan ko aise hee hilaa dene vaalee ghatnaa hai. Mujhe vah pal abhee bhi bahut kashta detaa hai.

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