याद आता है गुजरा जमाना 15
मदनमोहन तरुण
मिर्च खाओ , बुद्धि बढा॰ओ
मेरे एक सहपाठी की लिखावट मोती जैसी सुडौल थी।इस लिखावट के सिवा उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था जो उसे गौरव प्रदान कर सके।वह जाति का कुम्हार था।स्कूल से लौटने के बाद वह खेत से बर्तन बनाने के लिए मिट्टी लाता था जबकि हम खा – पीकर खेलते - कूदते थे।इस बात की कहीं –न -कहीं कोई कसक उसके मन में अवश्य थी।इसलिए उसने मोती की नफीस लड़ियों जैसी लिखावट को ही अपना उच्च कुलगोत्र बना लिया था और अपनी महत्वाकांक्षाओं की जंग का सबसे कारगर हथियार। उसकी तुलना में मेरी लिखावट बहुत ही खराब थी।एक दिन उसने मुझे गर्व से कहा – ‘मैं बड़ा होकर मजिस्ट्रेट बनूँगा और सब पर हुकूमत चलाऊँगा।’ जब मैंने अपनी छोटकी मामा से कहा तो वे अवाक रह गयीं। उन्हें यही लगा कि चलित्तर मजिस्ट्रेट बन गया और मैं शायद उसका चपरासी। भला मेरे जैसी खराब हैंडराइटिंगवाले को कोई नौकरी क्यों देगा ? अब बाबा - मामा सब मेरी लिखावट ठीक करने के पीछे पड़ गये, परन्तु कोई परिणाम न निकला।मामा ने दूसरा रास्ता चुना। मेरी दादी के पास एक तोता था जो बहुत कम बोलता था। किसी ने उन्हें बताया कि यदि तोते को खूब मिर्च खिलाया जाए तो वह बोलने तो लगेगा ही बहुत सी नयी चीजें भी सीख जाएगा।दादी ने अपने तोते को खूब मिर्च खिलाया और उनका यह प्रयोग सफल भी हुआ। तोता बोलने ही नहीं लगा उसकी स्मरणाशक्ति भी बढ़ गयी और वह परिवार के कई सदस्यों को उनके नाम से बुलाने लगा और सीताराम कहना तो सीख ही गया।दादी ने सोचा अगर मिर्च का इतना प्रभाव तोते पर पड़ सकता है तो उनके पोते पर क्यों नहीं पड़ सकता। उन्हें यह कत्तई गवारा नहीं था कि एक कुम्हार का लड़का मजिस्ट्रेट बन जाए और उनका पोता उसकी चपरासीगिरी करे।सो तोते पर किया गया प्रयोग उन्होंने मुझ पर भी करने की ठान ली।उनके सख्त अनुशासन में मुझे लम्बे अरसे तक अपने खेत की काली – काली तीखी मिर्चों से जूझना पड़ा।
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bachpan ki smritiya bhi kabhi mirch ki tarah tej to kabhi gur ksi mithi hoti hai.
ReplyDeleteYah ham sabon kaa bahpan hai. achhaa lagaa.
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