याद आताहै गुजरा जमाना 8
मदनमोहन तरुण
देवीथान
गॉव में कोई मंदिर नहीं था ।हॉं , मालियों के मुहल्ले में देवी स्थान जरूर था जहॉ एक घर सा बना था और उसके भीतर् - बाहर देवी की पिंडियॉं बनी थीं जहॉं शादी – व्याह के अवसर पर पूजा के लिए महिलाएँ जाया करती थीं।कई पर्व त्योहारों के अवसर पर देवी के बाहर की पिंडी पर बकरों की बली दी जाती। बकरे काटने का काम नन्नन अहीर किया करता था। उस समय उसके हाथ में एक नंगी तलवार होती और वह जैसे प्रमादियों - सा एक के बाद एक बकरे का सिर काटता जाता।बकरे का कटा सिर देवी की पिंडी पर रख दिया जाता और उनकी पिंडी पर खून का लेप लगा दिया जाता। यह सारा कृत्य भयावह और पैशाचिक था।इसे देखने के पश्चात कई दिनों तक सोते – जागते मुझे रक्तश्लथ छटपटाते बकरे और उन्माद में तलवार उठाए नन्नन अहीर दिखलाई पड़ता।बाद में गॉंधी जी ने बली की इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार अन्दोलन चलाया जिसके प्रभाव से सैदावाद में भी बली की प्रथा बन्द हो गयी।
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