याद आता है गुजरा जमाना - 16
मदनमोहन तरुण
जेठन भाई
मेरे घर के पास ही जेठन भाई का घर था।वे कुम्हार हैं।उनके ऑगन में चाक गड़ा था, जिसकी छेद में डंडा डाल कर घुमाते हुए उनके पिताजी दिन भर तरह – तरह के बर्तन गढ़ा करते थे।चाक पर मिट्टी का लोंदा चढ़ कर जैसे ही घूमने लगता वैसे ही उनकी पानी में भींगी हथेलियॉ उसे अपनी नर्म कसावट में ले लेतीं और मिट्टी का वह लोंदा नए – नए आकार लेने लगता ।कभी वे अपनी कसी मुट्ठी से उस लोंदे को दबाते ,फिर सम्हाल कर उसे अपनी हथेली से थामे रहते और एक सृष्टि धीरे - धीरे रूपाकार लेने लगती।मिट्टी के उस लोंदे से कभी घड़ा निकलता तो कभी कड़ाही , कभी चुक्का , कभी खपड़ा।उनकी इस सतत लीला को देखना एक असाधारण अनुभव था। सच पूछिए तो उनके इस महान कला - कौशल को निहारते – निहारते मैने यह ठान लिया था कि बडा होने पर मैं कुम्हार ही बनूँगा।तब जेठन भाई बहुत छोटे थे।मेरी ही उम्र के ,मगर मॉ के साथ खेत से मिट्टी का ढेला उठा - उठा कर लाया करते थे।तीसरी कक्षा तक जेठन भाई और मैं सैदाबाद के स्कूल में ही पढ़ते रहे।इसके बाद हम ऐनमा स्कूल में जाने लगे।ऐनमा सैदाबाद से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर है।हम यह रास्ता प्रतिदिन चल कर तय करते।ऐनमा का स्कूल गॉधी जी की शिक्षानीति पर बना बेसिक स्कूल था , जहॉ जीवन में मस्तिष्क और हाथ से काम के संतुलन और सम्मान पर बल दिया जाता था।इस नीति के अन्तर्गत जहॉं दोपहर तक हम कक्षाओं में पुस्तकों से गणित आदि की पढ़ाई करते , वहीं दोपहर के बाद खेतों में धान रोपने , बागवानी , चरखा चलाने और तकली से धागा निकालने की शिक्षा पाते।जेठन भाई की लिखावट मेतियों जैसी थी।वे पढ़ने में भी मुझसे तेज थे।
कुछ दिनों बाद उन्होंने ने स्कूल जाना बन्द कर दिया।उनके पिताजी का कहना था कि बर्तनों की मॉग बढ़ गयी है ऐसे में स्कूल जाकर किताबों में ऑख फोड़ने से अच्छा है मिट्टी ढोने में माँ की मदद करना।जेठन भाई खूब रोए ।मैंने भी उनके पिताजी को मनाने की बहुत चेष्टा की परन्तु उन्होंने ने एक न मानी।उनका कहना था कुम्हारी के लिए पढ़ने की क्या जरूरत है ?
पहले मैं स्कूल से घर लौटने पर जेठन भाई के पिताजी के पास बैठ जाता था और मुग्धभाव से उनका सृजन कार्य देखता रहता था ,परन्तु अब मुझे वह जगह एक उज्वल भविष्य की कत्लगाह दिखाई देती।उस समय से जेठन भाई के माथे पर मिट्टी का लोंदा और तनिक और बड़े होने पर धान के बर्ड़े - बड़े बोझों के अलावा किसी ने कभी कुछ और नहीं देखा।जेठन भाई को तो मैं जानता हूँ, परन्तु इसी सैदाबाद में और भी कई लोग होंगे जिनके सपने गरीबी और अशिक्षा की कत्लगाह के शिकार हुए होंगे।यदि ऐसा न होता तो विदेशों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवानेवाले भारतीयों की और भी बड़ी संख्या होती।
Copy Right Reseved By MadanMohan Tarun
phir koi jethan na ban jaye ,aisa mahaol banana hoga.
ReplyDeleteAap ki mulyavaan tippatniyon ke liye aabhari hun. Apnaa mat isee prakaar vejate rahein.
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