याद आता है गुजरा जमाना 23
मदनमोहन तरुण
राघो बाबू की दाढी॰
सैदाबाद में पढा॰ई समाप्त होने के बाद मैं जहानाबाद चला गया ,जहाँ मेरे पिताजी रहते थे। वहाँ के स्कूल के एक शिक्षक राघो बाबू छात्रों के प्रति बहुत क्रूर थे। उनकी बडी॰- बडी॰ दाढी॰ थी । वे तकली के शिक्षक थे। तकली से रुई के सहारे धागा निकाला जाता था ।यह कक्षा सप्ताह में दो दिन होती थी। सामान्यः छात्रों की इसमें कोई रुचि नहीं थी और अंतिम कक्षा होने के कारण उस समय तक हर कोई पूरी तरह थका होता था।ऐसे में छात्रों से तकली चलवाना कोई सआधारण काम नहीं था, परन्तु कक्षा तो होनी ही थी। सम्भवतः इसी मजबूरी के कारण राघो बाबू को कठोर बनना पडा॰ था। परन्तु , इस न्यूनता के लिए उन्होंने जो सजा तय की थी ,वह करीब - करीब अमानुषिक थी। वे ऐसे छात्रओं को, जो तकली लाना भूल जाते थे ,कठोर सजा देते थे। वे छात्र से हथेली बेंच पर रखवाते और उसपर लकडी॰ की हथौडी॰ से जोरों से प्रहार करते थे। इससे अपार पीडा॰ होती और सजा पानेवाले छात्र की हथेली कई दिनों तक फूली हुई रहती और वह कोई काम नहीं कर पाता था। इस दानवी सजा से बचने के लिए सभी लोग पुस्तकें लाना भले भूल जाएँ ,परन्तु तकली लाना नहीं भूलते थे।
पूरी सावधानी बरतने के बावजूद एक दिन मैं भी तकली लाना भूल गया।कक्षा शुरू होने के पहले से ही मैं भीतर से थर -थर काँप रहा था।कक्षा शुरू होने पर मैं सबसे पीछे बैठा और अपने को छुपाने की चेष्टा करता रहा, परन्तु उस क्रूर शिक्षक ने अपना उसदिन का शिकार ढूँढ॰ ही लिया। अपनी निर्मम आँखों से उन्होंने मुझे देखा और चिल्लाए - 'तकली निकालो !' मैंने रोनी आवाज में उन्हें जवाब दिया -' सर , लगता है तकली कहीं रास्ते में गिर गयी।' वे चिल्लाए -' तकली गिर गयी ? अच्छा इधर आओ , मैं उसे खोज निकालता हूँ।' राघो बाबू की आवाज सुन कर सभी छात्रों की उँगलियाँ थम गयीं और उनकी आँखें राघो बाबू का जल्लादी खेल देखने के लिए उनके टेबुल की ओर लग गयीं। मैं डरता - डरता राघो बाबू की ओर बढा॰। उनकी टेबुल के पास पहुँचते - पहुँते मैं पसीने से नहा गया था और थर -थर काँप रहा था।राघो बाबू ने क्रूरता से मेरी ओर देखा और गरजती आवाज में हथेली टेबुल पर रखने को कहा। मेरे पास हथेली टेबुल पर खोल कर रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। मैंने अपनी खूली हथेली टेबुल पर रखी। राघो बाबू ने हथौडी॰ ऊपर उठाई ,परन्तु इस बीच मुझमें न जाने कहाँ से इतना साहस आगया कि मैं उछल कर राघो बाबू की दाढी॰ में लटक गया। अब क्लास का नजारा बदल गया था। दाढी॰ पर जोर पड॰ने के कारण राघो बाबू लड॰खडा॰ गये। हथौडी॰ उनके हाथ से छूट कर नीचे गिर गयी।वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ।मैं उनकी दाढी॰ पर अपनी पकड॰ पूरी तरह मजबूत बना चुका था और उसके सहारे करीब - करीब झूल रहा था। अब राघो बाबू पीडा॰ से चिल्लाने लगे - 'अरे , छोडो॰छोडो॰ !!' मगर मैं कहाँ छोड॰नेवाला था। मैं अपनी पकड॰ और मजबूत बनाता गया और राघो बाबू की चीख - चिल्लाहट और तेज होती चली गयी' ।सभी छात्र अब जोर - जोर से हँस रहे थे।उन्हें जैसे प्रतिकार का सुख मिल रहा था। थोडी॰ देर बाद राघो बाबू मेरे भार से नीचे गिर गये। अब मैंने वहाँ रुकना सुरक्षित नहीं समझा और अपना बस्ता उस स्कूल में छोड॰ कर जो उस दिन भागा सो वहाँ दोबारा कभी नहीं गया। भागते समय राघो बाबू की दाढी॰ के बहुत से बाल मेरी हथेली में थे।
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