याद आता है गुजरा जमाना-22
मदनमोहन तरुण
मेरा पहला फुलपैंट
जब मैं सैदाबाद से जहानाबाद आया, जहाँ मेरे पिताजी रहते थे, तब मेरा नाम वहाँ के मिडिल स्कूल में लिखाया गया।इस स्कूल का नजारा ही अलग था। यह एक विशाल भव्य भवन में अवस्थित था।यहाँ करीब बारह शिक्षक थे। वे सब अच्छे - अच्छे कपडे॰ पहने रहते। उनका अपना कमरा विशाल था , जिसमें शानदार कुर्सियाँ थीं और एक विशाल टेबुल। प्रधानाध्यापक का कमरा अलग था। वहाँ जाने की अनुमति सबको नहीं थी। स्कूल में दो चपरासी थे।वे ही हर घंटे पर घंटी बजाया करते और उसके साथ ही अन्य विषय की अगली कक्षा शुरू होती थी। स्कूल का समय दस बजे से चार बजे तक रहता था।शिक्षक समय -समय पर वहाँ हमारे कपडों , नाखून, बाल आदि की सफाई की भी जाँच किया करते थे।
एक दिन बाबूजी ने मुझे एक कपडा॰ देकर कहा - 'इसे लेकर यूसुफ टेलरिंग में जाओ और अपना फुलपैंट बनवा लो।' मैं कपडा॰ लेकर दौडा॰ -दौडा॰ टेलर के पास गया।वहाँ दो लोग कुर्सियों पर बैठे बडी॰ तल्लीनता के साथ मशीन से सिलाई कर रहे थे। बीच मे एक दुबले ,लम्बे से सज्जन एक गद्दी पर तकिए के सहारे बैठे थे।उनके गले में नापनेवाला फीता माले की तरह लटका था। मैं उनके पास ही जाकर खडा॰ हो गया। उन्होंने ध्यान से मुझे देखा और पूछा - 'कोई काम है? '
मैंने कहा -' फुलपैंट बनवाना है।'
'किसके लिए?'
'अपने लिए।'
'तुम फुलपैंट पहनोगे ?' फिर तनिक रुक कर मेरी ओर देखते हुए बोले - 'फुलपैंट पहनने के लिए अँग्रेजी जानना जरूरी है। अगर तुम अँग्रेजी जानते हो , तभी फूलपैंट बनाऊँगा ,नहीं तो नहीं।'
सुनकर मुझे थोडा॰ क्रोध आगया। कपडा॰ सिलवाने के लिए किसी ऐसे नाटक का मुझे पहले अनुभव नहीं था। अबतक मैं अपनी माँ के हाथों सुई - धागे से सिले कपडे॰ पहनता रहा था।मुझे चुप देखकर यूसुफ मियाँ ने तनिक चुटकी लेते हुए कहा - 'नहीं जानते न, अँग्रेजी ?'
सुनकर मैंने क्रोध में कहा-' जनता हँ, जानता हूँ अँग्रेजी। फिर मैंने चिल्ला कर जैसे घोषणा की - 'अल्फावेट कैपिटल और ऊँची आवाज में, एक साँस में A से Z तक बोल गया - AB CD E F G .........W X Y Z. फिर मैंने उसी जोर से चिल्लाकर कहा -' अब अल्फावेट स्माँल और मन्द स्वर में कहा- a b c d e f .......x y z इसके बाद मैंने गर्व से सिर तानकर यूसुफ मियाँ की ओर देखा जिसका अर्थ था क्या समझते हो अँग्रेजी केवल तुम्हें ही आती है ? युसुफ मियाँ थोडी॰ देर अवाक से मेरी ओर देखते रहे, फिर मुस्कुराए और बोले - 'हाँ , हाँ तुम बहुत अच्छी अँग्रेजी जानते हो। मैं तुम्हारे लिए फुलपैंट जरूर बनाऊँगा।' कहकर उन्होंने मेरी नाप लेली और कुछ दिनों के बाद फुलपैंट बनाकर घर भिजवा दिया।
यह मेरा पहला फुलपैंट था। जिसकी याद मैं अब भी भुला नहीं पाया हूँ।
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