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Sunday, March 20, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 19

याद आता है गुजरा जमाना 19

मदनमोहन तरुण

वह पैशाचिक घटना 19

कभी बहुत पहले इस गॉंव में एक दर्दनाक हादसा हुआ था , बुजुर्ग बहुत दर्द के साथ उसे याद करते हैं।तब नन्दन जी की उम्र ग्यारह साल के करीब रही होगी जब उनके पिता दामोदर जी की मृत्यु हुई थी।वे गॉव – गॉव में लोगों के यहॉं पूजा – पाठ कर परिवार का पालन करते थे।घर में अर्जन का कोई अन्य माध्यम नहीं था।वे अपने बेटे नन्दन को कुछ और बनाने की इच्छा रखते थे, अतः वे उनकी पढ़ाई पर सबसे अधिक ध्यान देते थे। उन्हें पूजादि कराने के लिए अपने जीवन काल में कभी किसी के यहॉं जाने नहीं दिया।परन्तु किस्मत की मार देखिए कि वे स्वयं अचानक चले गये और परिवार के सामने भूख से बेहाल और विकराल जिन्दगी अपना मुँह बाए खड़ी हो गयी।फिर परिवार भी छोटा नहीं।स्वयं नन्दन जी की मॉ , उनकी विधवा बुआ और उनकी दादी जो गॉव में विकट डायन के रूप में विख्यात थीं और उन्हें लेकर घर में कई बार अपमानजनक हादसे हो चुके थे।उनकी दादी के बारे में प्रसिध्द था कि वे अगर किसी बच्चे को टोक दें तो उससे जिन्दगी सदा के लिए छिन जाती थी।कई बार उनकी टोकाटोकी को लेकर गॉववालो उनसे मारपीट कर चुके थे। गॉव के लोग उनकी नजर से अपने बच्चों को बचाते थे । लोगों की उनके परिवार के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी।लोग यही कहते कि डायन को खाने को जब कुछ भी न मिला तो अपने बेटे को ही खा गयी।ऐसे में नन्दन के सामने परिवार की जीवनरक्षा का पूजा – पाठ कराने के अलावा कोई और रास्ता न रहा।उन्होंने पढाई छोड़ दी और गॉव – गॉव पूजा की पोथी और जनेऊ लिए दौड़ लगाते रहे।

उम्र चालीस की हो गयी, परन्तु डायन के इस घर मे कोई अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं हुआ।अंततः एक गरीब ब्राह्मण ने अपनी दस साल की बिटिया उनके घर ब्याह दी।उसे परिवार के लोग प्यार से छोटी कह कर बुलाने लगे। छोटी अबतक अपने घर पर या तो गुड़ियों के साथ खेली थी या रसोई में अपनी मॉ के लिए पानी भर कर लाती रही थी।वह पति – पत्नी का मर्म क्या जाने। इसलिए जब उसे अपने पति के साथ सोने जाने को कहा गया तो वह रोने लगी और दादी में चिपक गयी।उसकी ददिया सास ने अबतक गॉंव वालों की ओर से सदा अपमान और अनादर ही पाया था ।घर में भी उनका कोई विशेष सम्मान नहीं था इसलिए पतोहू के अपने से चिपक जाने और अपनापन दिखाने से उन्हें थोड़ी राहत मिली और उन्होंने उसे अपने कलेजे से लगा लिया। अब छोटी दिन – रात उन्हीं से चिपकी रहती।किन्तु गॉंव में यह खबर दूसरे रूप में फैली।फुसफुसाहटों ने सैदाबाद की गली – गली के कान फूँक दिये कि बुढ़िया डायन अब अपने पतोहू को अपनी विद्या सिखा – पढ़ा रही है।कुछ दिनों के बाद गॉंव की कुछ औरतों ने दावा किया कि बुढ़िया डायन की पतोहू अपनी सास से भी भयंकर डायन बन गयी है और आधी रात के बाद गॉव की उन गलियों में मड़॰राती फिरती है जहॉं नवजात बच्चे हों।छाया की भला कोई सच्चाई होती है ? जितने लोग उतनी बातें।किसी – किसी ने तो छोटी को धधकती आग के रूप में देखने का दावा किया। किसी ने तो उसके खून से रँगे दॉत भी देख लिए।निस्सड़ ग्रामीणों की कल्पना इतनी उर्वर होती है , यह समझना मुश्किल है।

।उम्र बढ़ने के साथ – साथ उसमें स्वाभिक रूप से नारीत्व के भावों का उदय होने लगा था। जिसे वह पहले पराया पुरुष भर समझती थी अब वह उनसे अपने सम्बन्धों को समझने लगी थी , यद्यपि दोनों की उम्र में करीब तीस वर्षों का अन्तर था।नन्दन जी के लिए भी यह समझना सरल नहीं था कि वे उसके साथ कैसा व्यववहार करें ? फिर भी वे उसके प्रति अत्यंत स्नेहशील थे और पूजादि से लाई गयी साड़ी – धोती तथा अन्य चढ़ावे सब उसे ही देने लगे थे ,जिसकी वह खूब अच्छी तरह देखभाल करती थी।कभी – कभी वह उनके देर से घर लौटने या भोजन में उपेक्षा करने पर उन्हें डॉंटने भी लगी थी।नन्दन जी को इससे जीवन में रस आने लगा था।घर लौटने पर अब छोटी को बाहर निकलने में जरा भी देर होती तो वे बेचैन हो जाते और उसे पुकार लेते।हालॉकि ऐसा कभी –कभी ही होता था ।

परन्तु , छोटी की क्रूर नियति उसके साथ कोई और ही खेल खेलने की तैयारी में लगी थी।उस भावी का किसी को जरा भी एहसास नहीं था।जिन्दगी मिठास घोलती आगे बढ़ ही रही थी कि एक दिन पास के गॉंव के एक धनाढ्य परिवार का युवक अपने चार साल के बच्चे को कंधे पर बिठाए नन्दन जी को अपने यहॉ सत्यनारायण जी की पूजा कराने के लिए बुलाने आया।छोटी अपनी सास के साथ उस समय बहर दरवाजे पर ही खड़ी थी।गॉव के लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं ,वह इस तथ्य से पूर्णतः अज्ञात थी। युवक के कंधे पर छोटे बच्चे को देख कर वह भावुक हो उठी और उसने कहा ‘ ओह , कितना प्यारा बच्चा है ! और कह कर उसे प्यार से निहारती ही नहीं रही ,उसे तबतक अपनी गोद में लिए खेलती रही जबतक उसके पति उस युवक को पूजा की सामग्री के बारे में बताते रहे।पूजा की सामग्री के बारे में सारी जानकारी लेकर युवक फिर से अपने बेटे को कंधे पर बिठा कर चल पड़ा।वह अपने और सैदाबाद के बीच की नदी पार ही कर रहा था कि उसे अचानक कंधे पर बैठा बेटा लुंजपुंज - सा लगने लगा।जल्दी – जल्दी नदी पार कर वह किनारे पर आया अ‍ौर अपने बेटे को कंधे से नीचे उतार कर देखा तो वह अवाक रह गया।उसके बेटे का शरीर बुखार से तबे की तरह तप रहा था।उसकी ऑखें लाल थीं। वह हिलाने – डुलाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखा रहा था।अपनी एकमात्र संतान का पिता यह देख कर घबरा गया।उसके आसपास जार्न पहचान के लोगों की भीड़ जमा हो गयी।वह लोगों के पूछने पर बच्चे की आकस्मिक बीमारी का कोई कारण नहीं बता सका । उसने उसे कहीं भी अपने कंधे से नहीं उतारा था कि उसे कोई जीव - जंतु काट ले।लोगों की आवाज सुन कर उसके घर के लोग भी आ गये।घर के दरवाजे तक जाते – जाते बच्चे ने दम तोड़ दिया।पूरे गॉव में कोहराम मच गया। बच्चे का इस तरह अकस्मिक रूप से चल बसना किसी की समझ में नहीं आया।बच्चे का पिता भी अबतक अपने होश खो चुका था।तभी किसी ने कहा कि वे तो सैदाबाद के नन्दन जी से पूजा के लिए समय निश्चित करने गये थे , तो बच्चे का पिता होश में आगया। सारा दृश्य उसकी ऑंखों के सामने नाच उठा।जब नन्दन जी उसे पूजा की सामग्री के बारे में बता रहे थे तब उनकी छोटी बहू ने बच्चे को गोद में ले लिया था और वह उसके साथ तबतक हँसती – हॅसती खेलती रही थी जबतक वह बच्चे को उससे लेकर वहाँ से रवाना नहीं हो गया। अब ब्च्चे की मौत का कारण सब की समझ में आ गया। बच्चे की दादी ने चिल्लाते हुए कहा कि उसके पोते को नन्दन की औरत खा गयी है।उस परिवार के बारे में यह बात दूर –दूर तक फैल चुकी थी।किसी को शंका न रही ।बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने सैदाबाद का रुख किया। भीड़ के आगे – आगे अपने मृत पोते को गोद में लिए उसकी दादी चल रही थी। चीखती – चिल्लाती हुई।कोलाहल सुन कर पूरा सैदाबाद अपने – अपने दरवाजों पर आ खड़ा हुआ।कई लोग उनके पीछे चल पड़े।नन्दन जी के दरवाजे पर पहुँचते ही लोग चिल्ला – चिल्ला कर छोटी को बुलाने लगे।नन्दन जी कहीं पूजा कराने घर से बाहर निकल चुके थे। देर तक जब भीतर से कोई नहीं निकला तब क्रुध्द भीड़ घर के भीतर घुस गयी ।मृत बच्चे को उसकी दादी ने बीच ऑगन में लिटा दिया और चिल्लाने लगी ‘अरी ओ हरामजादन ! लौटा मेरे हॅसर्ते खेलते बच्चे को जिसे तू खा गयी। नहीं तो मैं तुम्हारा पेट फाड़ कर उसे बाहर निकाल लूँगी।’ नन्दन जी की भाभी ने हाथ जोड़ कर कहा -‘मेरी बहू का कोई कसूर नहीं। वह अभी नादान बच्ची है।’ परन्तु भीड़ को यह सुनने की फुर्सत कहॉ थी।लड़के का बाप अब उनके कमरे के भीतर घुस गया और छोटी के बाल पकड़ कर खींचता हुआ बाहर ले आया। छोटी हक्र्काबक्का थी। उसे अपने घर की ऐसी प्रसिध्दि का कोई ज्ञान नहीं था। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह सब क्या हो रहा है।क्षण भर को उसकी निगाह उस मरते बच्चे पर गयी, जिसे अभी कुछ देर पहले उसने अपनी गोद में खिलाया था। उसे देखकर उसके मन में कहीं यह मधुर इच्छा जगी थी कि उसके घर में भी कोई ऐसा बच्चा होता जिससे वह खेल पाती। परन्तु ,वह कुछ बोल भी पाती कि उस बच्चे की दवंग दादी ने उसके बालें को जोर से खींचते हुए उसे नीचे पटक दिया और जोरों से चीखी ‘ वापिस ला मेरे बेटे को हरामजादन , नहीं तो मैं तेरी एक गत नहीं छोड़ूँगी।’ परन्तु मरियल -सी छोटी जोर के झटके से अबतक गिर कर बेहोश हो चुकी थी।उसके बाद जो आया उसी ने उस पर लातें बरसाईं।वह छटपटाती रही , किन्तु कोई भी उसे बचाने का साहस नहीं कर पाया।जब लात – घूसों से भी संतोष नहीं हुआ तो मरते बच्चे के परिवार ने उस पर लाठियॉं बरसाईं। बच्चे के पिता को इससे भी संतोज़ नहीं हुआ। वह घर के भीर से किरासिन तेल की टिन उठा लाया और उसने पूरा तेल छोटी पर उजल दिय। अबतक बेहोश छोटी आग की लपटों की गर्मी से दग्ध - सी होश मे आगयी। उसके पूरे शरीर में आग लग चुकी थी । वह पूरे आँगन में अपनी रक्षा के लिए दौड॰ती रही , लोगों से अपनी रक्षा की गुहार लगाती रही , परन्तु कोई सामने आने का साहस नही कर सका।

गॉव के लोगों को जब लगने लगा कि मामला एक पैशाचिक खेल से आगे निकल कर संगीन होने वाला है , तब लोग वहॉं से धीरे – धीरे खिसक गये।

कुछ लोग कहते हैं छोटी की चिता जलाने की भी जरूरत नहीं पड़ी , वह ऑंगन में ही जल कर राख हो चुकी थी।।सैदाबाद के जीवन पर सबसे काला धब्बा यही है।

Copy Right Reseved by MadanMohan Tarun

2 comments:

  1. Bahut dardnak anubhav hai.andhvishwash prem par bhari pada kaisi vibambana hai.

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  2. Atishay uchit vivechan hai. Aap ke vichaaron kee
    prateekshhaa rhegi.

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