यादआता है गुजरा जमाना 17
मदनमोहन तरुण
ईश्वर - वध
जेठन भाई की तरह ही हरिनारायण भाई भी मेरे बचपन के लॅगोटिया यार हैं।हम साथ – साथ लाठी के घोड़े दौड़ाते , लुक्काचोरी का खेल खेलते बड़े हुए हैं।हरिनारायण भाई के परिवार ने विकट गरीबी देखी है ,किन्तु मन में आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा की उजास उस परिवार के हर चेहरे पर बनी रही है।यही कारण है कि सैदावाद के कई लोग जहॉ जीविका के लिए परम्परागत मार्गो की खोज करते – करते बली समय के व्दारा घिस - घिस कर सदा के लिए साफ कर दिए गये , वहीं हरिनारायण भाई ने जब एक रास्ता बंद देखा तो उसे छोड़ कर दूसरे रास्ते से निकल गये।
उनके ऑंगन में एक विसाल काले रंग का शिवलिंग था जिनकी उनके दादा जी प्रतिदिन स्नान करके पूजा किया करते थे।पूजा के बाद भगवान को भोजन के लिए कुछ - न - कुछ भोग लगाने का नियम था।परन्तु समयक्रम में भगवान तो वैसे - के - वैसे बने रहे परन्तु भूख की ज्वाला ने इस परिवार के फूल से मुस्कुराते कई बच्चों की जान ले ली।यहॉ तक की उन्हें अपनी सुन्दर - सी बहन की शादी एक बूढ़े से करनी पड़ी।फिर इस शिवलिंग की इतनी खुशामद क्यों जो बैठे - बैठे इस परिवार का रोज केवल ऑंटा गीला करता रहा और किसी संकट में कभी काम न आया ? भला ऐसा देवता किस का ? एक दिन दोपहर में जब परिवार के सभी लोग सोए हुए थे तब हरिनारायण भाई मेरे पास आए और अपनी असाधारण योजना में मुझे अपना साथ देने को कहा।उस योजना के कार्यान्वयन के लिए अदद एक हथौड़े की जरूरत थी और योजना थी एक नाकारा भगवान की सत्ता को सदा के लिए समाप्त कर डालने की। भला मैं ‘न’ कौसे कहता।योजना इतनी रोचक और अभूतपूर्व थी कि मैं भी इसे कार्यान्वित करने को बेचैन उठा।हथौड़ा मेरे घर में था।चुपके से लाकर उन्हें दे दिया और उनकी सहायता के लिए अपने साथ एक और लोहे तनिक भारी और गोल टुकड़ा भी ले लिया।उनके घर पहुँच कर हम शिवलिंग के दोनों और बेठ गये।कुछ ही देर में हरिनारायण भाई ने उनके ऊपर हथौड़े का भारी वार किया।उस प्रहार से भगवान टस - से - मस न हुए। लगता था इस घर में उन्होंने गहरी पैठ बना ली थी।हरिनारायण भाई ने कहा मुफ्त का खा – खा कर मोटे हो गये हैं।कहते – कहते उन्होंने भगवान के सिर पर हथौड़े का अगला जोरदार प्रहार किया।इसे भगवान सहन न कर सके और पूरी तरह हिल गये।अब मेरी बारी थी।मैंने लोहे के भारी गोले के टुकड़े से भगवान पर जोरों का प्रहार किया जिससे वे जगह – जगह से दरक गये।
उसके बाद क्या था, हम उनपर वार – पर- वार करने लग गये।कुछ ही देर में भगवान पत्थर के छोटे – छोटे टुकड़ों के रूप में आसपास बिखरने लगे और दिन ढलते – ढलते चूर्ण के रूप में परिवर्तित हो गये।हमलोगों ने बिना विलम्ब उन्हें घर के बाहर पड़ी राख की ढेर पर फैला दिया और पिंडी की खाली जगह पर बाहर से गेंदा का पौधा उखाड़ कर लगा दिया।हम अपनी इस कला पर मुग्ध रह गये।अब इसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि यहॉ कभी भगवान रहा करते थे और हर रोज पूजा के बाद मुफ्त की रोटी तोड़ा करते थे।
हम अपने इस कारनामें को निहार कर खुश हो ही रहे थे कि भीतर से हरिनारायण भाई के पिताजी खखरे।अब वहॉ रुकना सुरक्षित न था । मैं हथौड़ा और लोहे का गोल टुकड़ा लिए वहॉ से खिसक गया।उस दिन हरिनारायण भाई की अच्छी पिटाई हुई ।किन्तु इसके साथ ही उसदिन एक ऐसी घटना घटी जिसने हरिनारायण भाई के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। इस घटना के दूसरे ही दिन उनके घर बनारस के एक पंडा जी आए।बातों - बातों में उन्होंने शाम को चबेना चुरमुराते हुए हरिनारायण भाई से पूछा –‘ रामलीला में नौकरी करोगे ?’ हरिनारायण भाई ने अबतक रात – रात भर कई बार जाग कर रामलीला देखा था , वे उसी रामलीला के पात्र हो सकते हैं ,यह उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था।उन्होंने पंडा जी की ओर साश्चर्य देखा।पंडा जी ने उनकी मनोदशा समझते हुए कहा – 'असल में हमारी रामलीला में सीता का अभिनय करनेवाला लड़का बड़ी उम्र का हो गया है। तुम अभी किशोर हो ।देखने में सुन्दर और कोमल हो।तुम्हें सीता के रूप में देखना लोगों को अच्छा लगेगा। बड़े होने पर राम भी बन सकते हो।’फिर वे तनिक रुक कर बोले – ‘तुम्हें दोनों समय का भोजन , पहनने को कपड़ा और रामलीला के अंतिम दिन निकलनेवाली झॉकी के चढ़ाबे से भी कुछ मिलेगा।बरसात के दिनों में जब कुछ दिन के लिए कहीं रामलीला नहीं होगी तो तुम अपने माता – पिता से मिलने भी आ सकते हो।’ पंडा जी की बातों से सब की ऑखें चमक उठी।हरिनारायण भाई दूसरे दिन ही बनारस चले गये। समय बीतता गया और गॉंव मे उनके बारे में लोगों को खबरें मिलती रहीं, खास कर उनके बाबा के व्दारा।उनका छोटा भाई समय – समय पर उनसे मिलने जाता और वहॉ से हरिनारायण भाई अपनी माँ , बाबूजी ,बाबा के लिए साडी॰ , धोती और कुछ रुपया – पैसा भी भेजते रहते।कुछ दिनों बाद उनका छोटा भाई भी उन्हीं के पास चला गया। जीवन के अंतिम दिनों में उनके मॉ – बाप ने सुख के दिन भी देखे।लोग कहते बेटा हो तो हरिनारायण जैसा ? हरिनारायण भाई की तरह गॉंव के कई युवकों ने अपने घर के शिवलिंग पर हथौड़े बरसाए, लेकिन किसी को किस्मत का वैसा साथ नहीं मिला। लोग कहते हैं बाबा भोलेनाथ का क्या , वे दिन भर तो भॉंग खाए रहते हैं।उन्हें कुछ पता थोड़े चलता है कि कौन उनका भक्त है और कौन उनका शत्रु।सो , हरिनारायण जी जब उनके सिर पर हथौड़े बरसा रहे होंगे तो वे भॉंग के गहरे नशे में रहे होंगे और उन्हें अभिशाप देने के बदले वरदान दे बैठे।
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