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Sunday, February 13, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 9

याद आताहै गुजरा जमाना 9

मदनमोहन तरुण

सहृदय सैनिक

हिन्दुओं के मुहल्ले में हमारा घर पूरब की ओर गॉव के सबसे आगे या अंत में था, जिसके आगे खेत ही खेत थे।हमारे घर के सामने पीपल का एक विशाल पेड़ था। धूप में चमकती और हवा के झोकों पर झूलती इसकी एक -एक आबदार पत्ती मे गजब की गरिमा थी। इसकी लम्बी छाया हमारे घर के बाहर के चबूतरे पर पड॰ती थी जहाँ हमारे बाबा गाँव के किसी मामूली या गंभीर झगडो॰ में या तो सुलह कराते या दंड देते थे। गाँव के लोगों की उनपर अटूट श्रद्धा थी। यह वृक्ष मुझे इसलिए भी याद आता है कि देश के विभाजन की घोषणा के बाद गाँव की रक्षा के लिए फौज के लोग भेजे गये थे और वे हमारे दालान में ही रहते थे।उनके पास एक तीतर पक्षी था जिसे वे इस पेड॰ की शाखा से लटका दिया करते थे। वे बहुत ही सहृदय सैनिक थे। गाँव के लोग उन्हें सदा घेरे रहते थे। उन्हें आसपास की आंतरिक खबरें भी उनसे तथा उनके निजी आंतरिक सूत्रों से मिलती रहती थी।

मुझे वे सबेरे -सबेरे घर से बुला लेते और मुझे कटोरा भर दूध करीब - करीब जबरदस्ती पिलाते। उनके जाने के बाद हर किसी को लगा जैसे उनके अपने परिवार के लोग चले गये। युद्ध जैसा कठिन कार्य करनेवाले सैनिकों की यह छवि शायद ही कोई भुला पाया हो।

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