भीमसेन जोशी : याद आता है गुजरा जमाना 89
मदनमोहन तरुण
भीमसेन
जोशी : वह अपार्थिव आवाज
24 जनवरी 2o11 का वह दिन अब भी याद है जब समस्त माध्यमों
से पं भीमसेन जोशी के इस संसार से विदा लेने का समाचार आया था। मन के भीतर दूरतक सन्नाटा
पसर गया था। शास्त्रीय संगीत की दुनिया की उस दवंग आवाज की स्वर - लहरियाँ तो वैज्ञानिक
साधनों की कृपा से अब भी हमारे चारों ओर गूंजती रहेगी , लेकिन पृथ्वीलोक का एक सपूत
हमसे सदा
के लिए विदा ले गया , यह कसक मन के भीतर हमेशा सालती रहेगी। ।
शास्त्रीय संगीत के विरल गायक भींसेन जोशी को सुनना
किसी विरल अनुभव से कम नहीं होता था।
मैंने उन्हें आमने - सामने बैठकर कईबार सुना है और
मेरे अन्तः में वे स्मृतियाँ अब भी यथावत अंकित हैं। भीमसेन जोशी का गायन जब शुरू होता
तो उनकी पार्थिव काया मानों धीरे - धीरे अलाप के साथ पिघलने लगती और वह कुछ ही देर
में विशाल जल- प्रवाह के रूप में परिणत हो जाती।पहले मानो लम्बी तरंगें मन- प्राणों
में उतरकर एक सम्मोहनभरा वातावरण उत्पन्न कर देती और फिर सूक्ष्म तरंगों की मसृणता
लहरों में और फिर लहरों से धीरे - धीरे ज्वार में परिणत हो जाती। नदी सागर बन जाती।मन
का आकाश मेघाच्छादित हो उठता , बादल गरजने लगते ,हूह भरी हवाएँ चलने लगतीं और फिर शुरू
होजाती विरल स्वर - लहरियों की झमाझम बरसात और श्रोता की दैहिक सत्ता सम्मोहनपूर्ण
अनुभूति में परिणत होकर एक नये संसार में प्रक्षेपित हो जाती।
ऐसा था उनके गायन का विरल प्रभाव। स्वर की गहनता,
उत्तानता, गरिमा, हिल्लोलमय स्वर - लहरियां श्रोता की दैहिक सत्ता को सृष्टि के सूक्ष्म
तरंगों का अंग बनाकर विशद व्यापकता में परिणत कर देतीं।हम स्वयं शेष से अशेष बन जाते
और हमारा पार्थिव परिवेश सकल ब्रह्माण्ड के आनन्दमय नाद का महाकाश बन जाता।
भीमसेन जोशी संसार के उन विरल महान गायकों में हैं
जिनकी स्वर लहरियों की उद्दामता, उदात्तता
,हमारी स्मृति और अनुभूति का चिरतर अंग बन जाती है।
हम केसेट , सीडी आदि के आभारी हैं , जिन्होंने इन
महान विभूतियों के अपने - अपने लोक में चले जाने के बावजूद , इन्हें हमारी दुनिया में
कायम रखा है।
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