साँप
: याद आता है गुजरा जमाना 98
मदनमोहन तरुण
साँप
लगता है साँपों से मेरा कोई पुराना सम्बन्ध हे,साँप
चाहे जो भी हो,पशुजाति का या मनुष्यजाति का ।
आज से बहुत पहले मैंने 'साँप' शीर्षक से एक कविता
लिखी थी -
एक साँप
खूँटी पर टँगा हआ
एक साँप
रंध्र में अँटा हुआ
एक साँप
डटा हुआ द्वार पर
एक साँप
मैं
किसको डँसूँ ?
तब मैं विक्रम के जिस मकान में रहता था उसके पीछे
के भाग में कई अधबनी दीवारें थी। ,जो शायद कोई कमरा बनाने के लिए उठाई गई हों और बाद
में उन्हें अधबना ही छोड॰ दिया गया हो। जबतक मैं उस मकान में अकेला रहा तबतक मैं कभी
उसओर गया ही नहीं। जब कुछदिनों बाद जब वहाँ मेरी पत्नी आईं तो मकान की नये ढंग से सफाई
और देखरेख शुरू हो गयी। पीछे का भाग भी धूप सेंकने के लिए इस्तेमाल में आने लगा।एकदिन
प्रातःकाल मेरी पत्नी ने कहा कि यहाँ साँप रहते हैं।'मैने एक साँप को दीवार से होते
हुए किसी और दिशा की ओर जाते हुए देखा है।' मेरा माथा ठनका। सुरक्षा की दृष्टि से यहाँ
रहना किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं हो सकता था। भला जिस घर में साँप रहता हो, उस
घर में आदमी कैसे सुरक्षित अनुभव कर सकता है? अब मैंने निश्चय कर लिया कि यह मकान शीघ्र
ही छोड॰ दूँगा और नया मकान देखने भी लगा।
दूसरे दिन मेरी पत्नी ने पीछे से बुलाया।सुबह के
सात बज रहे थे।भगवान सूर्य आकाश में लालिमा के सम्मोहन का विस्तार करते हुए अपनी यात्रा
आरम्भ कर चुके थे। मैं नीचे गया तो पत्नी ने बिना कुछ बोले सामने की अधबनी दीबार की
ओर आकर्षित किया। मैंने जो देखा ,तो देखता ही रह गया। वहाँ एक काली धारियोंवाला सफेद
साँप कुंडली मारे सूर्य की ओर फण उठाए सुस्थिर भाव से अवस्थित था। हमारे वहाँ जाने,
खडे॰ होने की आबाजाही से वह सर्वथा अप्रभावित देरतक उसी मुद्रा में बना रहा। हमलोग
भी वहाँ से अपनी दृष्टि हटा नहीं सके। हमलोग उस दिव्य सर्प को देर तक देखते रहे। थोडी॰
देर बाद जब सूर्य की लालिमा थोडी॰ कम होने लगी तो वह साँप धीरे से सरकता हुआ दीबार
में कहीं गायब हो गया। यह एक भयावह स्थिति थी । वह कोई साधारण साँप नहीं ,विषधर नाग
था। ।
यहाँ रहना मौत के मुँह में रहने जैसा था। मैंने मकान
ढूँढ॰ने की प्रक्रिया तेज कर दी।
अगले दिन
सबेरे श्रीमतीजी ने मुझे फिर नीचे बुलाया। आज भी वही दृश्य था। नाग सुस्थिर भाव से
सूर्य की ओर फण काढे॰ अपनी गोल कुंडली पर अवस्थित था। आज फिर वह उसी मुद्रा में डटा
रहा। सूर्य की लालिमा कम होते ही वह फिर सरकता हुआ दीबार में कहीं गायब होगया। यह दृश्य मैंने उसके बाद भी कई बार देखा। अब उस
साँप के बारे में मेरा और मेरी श्रीमती का दृष्टिकोण पूरी तरह बदल गया। हमलोगों ने
सोचा इतना दिव्य साँप कोई साधारण साँप नहीं होसकता।अवश्य ही यह पूर्वजन्म का महान योगी
है। इससे हमें कोई हानि नहीं हो सकती। अब हमलोगों ने मकान न बदलने का निर्नय कर लिया।
हमलोग उस मकान में अगले दो वर्षों तक रहे।
मेरे एक 'मित्र' नाश्ते के समय किसी - न - किसी बहाने
मुझसे मिलने आजाया करते थे। वे मेरी पत्नी की पाककला की बहुत तारीफ करते और कभी - कभी
किसी बात के लिए मेरी भी प्रशंसा कर दिया करते थे।उनके बारे में मेरे कई मित्रों ने
बताया था वे कि मेरे पीछे मेरे खिलाफ तरह - तरह की चुगली करते हुए मेरी जडें॰ काटने
का प्रयास किया करते हैं।मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया , परन्तु जानता था कि
वे इसी प्रकार के 'इंसान' हैं। एकदिन जब वे नाश्ता करते हुऐ मेरी पत्नी की पाककला की
तरीफ कर रहे थे तो मैंने उनका ध्यान बँटाते हुए कहा - 'इस मकान में एक विचित्र नाग
रहता है।' सुनते ही उन्होंने अपने दोनों पाँव उठाकर कुर्सी पर रख लिए और साश्चर्य चिल्लाए
- 'क्या साँप '। उनका चेहरा इस समय देखने लायक था। लग रहा था मानों वहाँ सच में साँप
आगया हो। किसी प्रकार नाश्ता समाप्त कर मेरे यहाँ से लौटते समय उन्होंने कहा - आपको
यह मुझे पहले ही बताना चाहिए था । अब मैं आपके यहाँ कभी नहीं आऊँगा। जिसके घर में साँप
हो , वह घर सुरक्षित नहीं हो सकता।' कहकर वे चलते बने। उनकी बातों से मेरी पत्नी को
बहुत निराशा हुई।कहा उस आदमी ने हमलोगों की सुरक्षा के बारे में कुछ भी नहीं कहा ,
मात्र अपनी चिन्ता करता हुआ चलता बना।हमलोग दरवाजे की ओर आगे बढ॰ कर देखने लगे जिधर
वे तेजी से पाँव बढा॰ते चले जा रहे थे। हवा तेज थी।उनकी धोती उड॰ती हुई हवा मे लहरा
रही थी और सूरज की रोशनी में इसतरह झलमला रही थी जैसे अनेकों साँप एक साथ चले जारहे हों।
। श्रीमती ने कहा - वह देखिए कैसा लग रहा है ?' मैने कहा – ‘यह एक अधिकतम विषैले नाग
से मुक्ति का दिन है।'
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