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Tuesday, January 31, 2012

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 91


मधुबाला : याद आता है गुजरा जमाना 91
मदनमोहन तरुण
मधुबाला रूप और यौवन का महोत्सव

सुन्दरता ईश्वर की कला का परम उत्कर्ष है। वह अपनी सृष्टि को निरन्तर विविध रंगों और रूपों से सजाता रहता है। इस विराट - विशाल सृष्टि का कण -कण और क्षण - क्षण अपार सौन्दर्य से परिव्याप्त है जो हमें निरन्तर जीने की प्रेरणा देता है।हरिताभ वृक्षों पर जब खिलखिलाते फूलों की बहार आजाती है,नदी का शांत जल-विस्तार जब प्रभात की किरणों से रंजित होकर उसकी अपार लीलामयता का महोत्सव बन जाता है ,रात्रि का आकाश जब तारों से मंडित होकर अंधकार में भी चमक उठता है,कोई सुन्दर चेहरा जब हमारी दृष्टि से सरकता हुआ निकल जाता है तब उन सम्मोहनपूर्ण पलों में भी विधाता की इस कवित्वमय कला की सराहना किये बिना हम नहीं रह सकते।

सुन्दरता का प्रभाव असाधारण होता है। वह हमारे मन- प्राणों में गुदगुदी पैदा कर देता है।हमारी चेतना पर छाजाता है।हमारी स्मृति को सदा के लिए आवृत कर लेता है। अबतक मैंने जितने सुन्दर चेहरे देखे हैं , जितने सुन्दर दृश्य देखे हैं , वह मेरे भीतर उसी पल के सम्मोहन के साथ अंकित है। सोचकर कभी - कभी चकित होजाता हूँ कि ईश्वर ने हमारे भीतर कितना बडा॰ जीवंत कैनवास दिया है जिसपर जितने भी चित्र बनाओ , वह कभी भरता नहीं। ईश्वर ने हमें जो भी दिया है , भरपूर दिया है।

इन पंक्तियों को लिखते हुए मुझे अपने जमाने की फिल्म अभिनेत्री मधुबाला की याद आरही है।रूपवती मधुबाला सौन्दर्य का जादूई निर्माण थी।उसकी हिरणी - सी चमकती चंचल बडी॰ - बडी॰ आँखें , रसभरे होंठ,चेहरे की प्रफुल्ल ताजगीभरी आभा और समग्र शरीर की लोचभरी पृथुलता में एक असाधारण सम्मोहन था, जिसे भुलापाना असम्भव है।

योंतो 'मुगले आजम' मधुबाला की सुप्रशंसित फिल्मों में से एक है ,परन्तु उसके सौन्दर्य के उत्कर्ष का जो निखार 'बरसात की रात' फिल्म में दिखाई पड॰ता है , वह अन्यत्र कहीं भी नहीं।मुहम्मद रफी की आवाज और भारतभूषण जी द्वारा अभिनीत 'जिन्दगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात' गाने की प्रगति के साथ मधुबाला  के कल्लोलपूर्ण  यौवन  - हिल्लोलित सौन्दर्य का जो उत्कर्षपूर्ण चित्रण हुआ है , वह हिन्दी के अबतक के फिल्म -संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं हुआ है। वह एक रूपसी के ब्लैक ऐण्ड ह्वाइट में चित्रित सौन्दर्य का असाधारण जीवंत और जीवंत साक्षात्कार है।  उनपलों की मधुबाला को देखना एक अभूतपूर्व अनुभव है। ‘न भूतो न भविष्यति ।‘उस पल की मधुबाला को मैं अपने आप्यायित क्षणों में आज भी जब जी करता है , अपनी आँखें मूँदकर देख लिया करता हूँ।

आज सुन्दरी अभिनेत्रियों की कमी नहीं , परन्तु वे अपने चेहरे के साथ अपनी नंगी टाँगें इतनी बेरहमी से बार - बार दिखाती हैं कि  कईबार पता नहीं चलता कि उसकी टाँग कहाँ है और उसका चेहरा कहाँ है।

मधुबाला के चेहरे जैसा ही उसका जघन-प्रदेश और पृष्ठ -प्रदेश भी उच्छल प्रभाव डालता था ,एक थ्रिल पैदा करता था, दिल की धड॰कनें बढा॰ देता था ,परन्तु मुझे याद नहीं कि स्नान के दृश्य में भी कभी उसने अपने शरीर का भद्दा प्रदर्शन किया हो। इसी बात पर एक कहानी याद आती है।शायद यशपाल जी की कहानी 'तुमने क्यों कहा था कि मैं सुन्दर हूँ' कि याद आरही है।इस कहानी की याद बहुत झीनी - झीनी -सी है इसलिए इसके चित्रण में कोई त्रुटि रह गयी हो ,तो क्षमा करेंगे।एक युवक को एक सुन्दरी युवती बहुत पसन्द थी । वह छुप - छुप कर जब भी अवसर मिलता उसे निहारा करता था।थी। इसका उस युवती को भी एहसास था।युवक की दृष्टि से सम्मोहित युवती एकदिन उसके पास पहुँच गयी।उसने सोचा युवक ने अबतक केवल मेरा चेहरा देखा है , इसने मेरा पूरा सुन्दर शरीर तो देखा ही नहीं।यह सोचकर युवती ने अपने शरीर से सारे कपडे॰ खोल कर हटा दिये और युवक के सामने नंगी खडी॰ होगयी । अबतक जो युवक उसे सम्मोहनपूर्ण निगाहों से देख रहा था उसे इस तरह अपने सामने नग्न देखकर मर्माहत होगया। उसे उस युवती से इतनी वितृष्णा हो गयी कि वह वहाँ से उठकर चला गया और उसने उस युवती को फिर कभी नहीं देखा।

महान कलाकारों ने स्त्री - पुरुष के नग्न शरीरों का असाधारण और अविस्मरणीय चित्रण किया है। वे हमारी कला की अमूल्य थाती हैं किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि हमारी अभिनेत्रियाँ हमारे सामने जब मन मेंआए तब नंगी खडी॰ होजाएँ। ऐसी नग्नता निस्सन्देह हमारी सौन्दर्य - चेतना को आहत करती हैं।

। उसका वह उद्दाम कल्लोलभरा रसमय यौवन , वह खनकभरी हँसी , वे जादूई आँखें इस जमाने की भीड॰ में भी कभी खो नहीं सकती। अबतक समय न जाने कितने दौरों से गुजर गया , लेकिन अपनी पत्नी के साथ देखी फिल्म 'बरसात की रात' की मधुबाला को शायद ही कभी भुला सकूँगा।
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