जागृति
: याद आता है गुजरा जमाना 92
मदनमोहन तरुण
इस
देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के
अपने समय में बनी जिन फिल्मों को मैं कभी भुला नहीं
पाया , उन आसाधारण फिल्मों में 'जागृति'
एक है। स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में अभिभट्टाचार्य
का अभिनय इस फिल्म की उपलब्धियों में है। वे प्रधानाचार्य के रूप में अपने छात्रों
में नूतन मूल्य - चेतना जाग्रत कर उन्हें निष्ठावान नागरिक के रूप में ढालना चाहते
हैं। स्कूल के अधिकारी एवं शिक्षकगण उनके इन प्रयोगों से सहमत नहीं हैं ,इस कारण उनकी
आलोचना होती है ,परन्तु वे अपने प्रयोगों के प्रति अटल रहते हैं।
इन्हीं दिनों एक धनाढ्य परिवार के छात्र अजय का विद्यालय
में नामांकन होता है। अजय एक नियम -भंजक है। वह हर रोज नयी - नयी शरारतें करता है और
अपने कुछ शिक्षकों का जीवन दुष्कर बना देता है। स्वयं प्रधानाचार्य भी कभी - कभी उसे
सु धारने
में स्वयं को असमर्थ अनुभव करते हैं ,किन्तु वे अपनी प्रयोगधर्मिता का मार्ग नहीं छोड॰ते।
इसी बीच अजय की मित्रता शक्ति नाम के एक अपंग सहपाठी
से हो जाती है जो अपनी गरीब माँ का एकमात्र बेटा है तथा जो जीवन के उच्च मूल्यों के
प्रति समर्पित है। शक्ति भी अपने इस मित्र को सुधारने की बहुत चेष्टा करता है , परन्तु
सफल नहीं हो पाता। एकदिन अजय स्कूल से चले जाने का निर्णय लेता है। अजय को रोकने के
क्रम में सड॰क पार करते समय एक्सीडेंट में शक्ति की मृत्यु होजाती है। इस अप्रत्यासित
घटना से आहत अजय के जीवन में असाधारण परिवर्तन आता है। उसके भीतर की दिशाहीन शक्तियाँ
सुसंगठित होकर नया रूप लेलेती हैं। कुछ ही दिनों में वह अध्ययन और खेल दोनों ही में
अपना सर्वोपरि स्थान बना लेता है।
आत्यंतिक घटनाक्रमों , भाव -संवेगों के बीच से गुजरती
इस फिल्म की सुनियोजित कहानी न तो कहीं शिथिल होती है, न कहीं अकारण स्खलित होती है।
अजय के आचरण की आत्यंतिकता, शक्ति के चरित्र की गहन संवेदनशीलता एवं अभिभट्टाचार्य
जी की सुनियोजित, किन्तु नयी स्थितियों की स्वीकृति के प्रति खुलापन ,फिल्म को कहीं
भी अस्वाभाविक होने नहीं देता और उसका प्रभाव निरन्तर गहन से गहनतर होता जाता है।
सुनियोजित कहानी, सुसिद्ध अभिनय कौशल , स्थान - स्थान
पर ऐतिहासिक घटनाक्रमों का कुशल संगुफन , के साथ ही इस फिल्म की एक और असाधारण और कालजयी
उपलब्धि है, और वह है ,कवि प्रदीप जी द्वारा लिखे इस फिल्म के अमर गीत , जो कानों से
होकर हृदयतल में गूँजने लगते हैं। उन गीतों मे ' आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिन्दुस्तान की , इस मिट्टी से तिलक करो यह
मिट्टी है बलिदान की', जिसे स्वयं कवि प्रदीप जी ने गाया है, ऐसे ही दूसरे राष्ट्रभक्तिपरक
गीत ' दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल,
सावरमती के संत तूने कर दिया कमाल', को आशा भोसले जीने गहन भावुकता से प्रस्तुत
किया है तथा ' हम लाए हैं तूफान से किश्ती
निकाल के , इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के', जैसे महान गीत को मुहम्मद रफी
जी का स्वर मिला है। राष्ट्रीय समारोहों के अवसर पर आज भी , करीब 62 साल बाद भी ,ये
गाने मन- प्राणों पर वैसा ही गहन प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
इस फिल्म का निर्देशन सत्येन बोस जी ने और संगीत
निर्देशन हेमंत कुमार जी ने किया था।
यह फिल्म पहली बार 1956 में रिलीज हुई थी, तब मैंआठवीं
कक्षा का विद्यार्थी था। इसे मैंने घुमंतू सिनेमा के टेंट में दरी पर बैठकर देखा था।
अबतक मैं इस फिल्म का एक भी दृश्य नहीं भूला हूँ।इसके कलाकारों की एक -एक भंगिमा मुझे
याद है।
कवि प्रदीप जी ने हिन्दी को कई अमर गीत दिये हैं,
परन्तु इस फिल्म का हर गीत तबतक अमर रहेगा ,जबतक हममें राष्ट्राभिमान की अनुभूति बनी
हुई है।
इस फिल्म के गानों की ऊष्मा का एक और कारण है। जब
यह फिल्म बनी थी , तब हमारी आजादी के केवल आठ - नौ साल ही गुजरे थे। सावरमती के उस
अनूठे संत की अद्भुत लडा॰ई हर किसी के भीतर तरोताजा थी।इस फिल्म को ऐसे अनेकों लोगों
ने देखा था जिसने गाँधी जी की इस अनूठी लडा॰ई में भाग लिया था।
यह फिल्म हमारी उन क्लैसिक फिल्मों में है जो हमेशा
नहीं बनतीं, इस के फिल्म गाने उन अमर गानों
में हैं ,जो हमेशा नहीं लिखे जाते।
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