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Tuesday, March 22, 2011

Yaad Aataa Hai Gujaraa Jamaanaa 20

याद आता है गुजरा जमाना - 20

मदनमोहन तरुण

कुहासे का रथ

अपने स्कूल जीवन की एक रहस्यमय घटना को मैं आज तक भुला नहीं पाया।जून का गर्मी से धधकता महीना था।स्कूल सवेरे सात बजे आरम्भ होकर ग्यारह बजे बन्द हो जाया करता था।वैसे घर से स्कूल कम दूर न था ।वह गॉंव के दूसरे अंतिम छोर पर था।रास्ते में हजारी साव बनिया की दुकान थी वहॉ से आगे एक घनी बॅसवाड़ी थी । उसके पीछे दरधा नदी।मुझे वहॉं पर हमेशा डर लगा करता था और मैं वहॉं से तेजी से भागता हुआ स्कूल पहुँच जाता था।स्कूल से वापिस लौटते समय कोई - न – कोई बच्चा मेरे साथ अवश्य ही रहा करता था।एक दिन मुझे स्कूल से अकेले ही लौटना पड़ा।जेठ की लू से हुहुआती दुपहरिया थी।मैं तेजी से भागा चला जा रहा था।कुछ बॅसवाड़ी के डर से , कुछ धूप से बचाव के लिए।हजारी साव की दुकान के पास से आबादी शुरू हो जाती थी ,इसलिए यह मेरे राहत की जगह थी।परन्तु उस दिन वहॉं का नजारा ही कुछ और था।जब मैं हजारी साव के घर के पास पहुँचा तो वहाँ मुझे कई औरतों के अत्यंत कातर स्वर में बिलख – बिलख कर रोने की आवाज सुनाई पड़ी।मैं वहाँ थोड़ा रुक गया। तभी देखा कि कई लोग कफन जैसे सफेद कपड़े पहने और सिर मुडा॰ए आ – जा रहे थे। इसके साथ ही उनके घर के ठीक सामने, बीच रास्ते पर मैंने एक रहस्यमय रथ खड़ा देखा जो एक सुन्दर मकान जैसा था। एकदम सफेद।उसमें अगरबत्ती जल रही थी।वह मकान गहरे कुहासे जैसा दिखाई दे रहा था । उसका कोई भी हिस्सा जमीन से सटा हुआ नहीं था। लगता था जैसे वह हवा में टॅगा हो। मैं कौतूहलवश उस मकान के नीचे से गुजरने की इच्छा से उसके एकदम निकट चला गया,परन्तु , मुझे वहाँ बहुत जोरों का झटका लगा । लगा किसी ने मुझे बहुत जोरों से वहाँ से धक्का देकर हटा दिआ।

पता नहीं क्यों मैं बहुत डर गया और भागा – भागा घर आकर बाबा के पास बैठ गया। मैं हॉंफ रहा था। थोड़ी देर में जब मैं शांत हुआ तो बाबा को सबकुछ बताया।बाबा ने कहा कहीं हजारी साव का निधन तो नहीं हो गया ! मुहल्ले के लोगों ने कहा कल तक तो वे एकदम ठीक थे। उनके परिवार में भी कोई बीमार भी नहीं था।मेरे मन में भी भूचाल सा मचा था। पता नहीं क्यों मुझे लग रहा था कि जो मैंने आज देखा वह कोई साधारण दृश्य नहीं था।मैं अपने मुहल्ले के कुछ लोगों के साथ वहॉ फिर से गया। इस बार वहॉं का वातावरण एकदम शांत था। हजारी साव सदा की भॉंति शांत भाव से लोगों को सौदा तौल – तौल कर दे रहे थे।हमलोग सब देख कर चुपचाप लौट आए।लोगों ने कहा आप डर गये होंगे। मैं चुप रह गया ।परन्तु मेरे लिए उसे मात्र काल्पनिक घटना मान लेना असम्भव था।मैंने अपने कानों से स्त्रियों को आर्तनाद करते सुना था । बाबा ने भी उसे मेरा वहम मान कर टाल दिया।परन्तु दादी डर गयीं ।उन्हें लगा बच्चे को किसी की नजर लग गयी। उन्होंने आग में मिर्च जला कर मेरी नजर उतारी। परन्तु यह भी सच है कि मैं दूसरे दिन स्कूल अकेला नहीं जा सका ।जब अन्य मित्र चले तो मैं उनके साथ हो लिया।कुछ दिनों बाद मेरा भय चला गया और मेरा स्कूल जाना सामान्य हो गया।

इस घटना के करीब पन्द्रह दिनों बाद जब मैं स्कूल से लौट रहा था तो मैंने फिर हजारी साव के घर से गुजरते समय ठीक उसी दिन की तरह महिलाओं को उनके घर के भीतर से आर्त्तनाद करते सुना।साथ ही उसी दिन जैसे कई पुरुष अपना सिर मुडा॰ए और शरीर में सफेद कपडा॰ लपेटे घर के भीतर आना - जाना कर रहे थे। मैं बहुत डर गया और वहॉं से बेतहाशा दौड़ने लगा और हॉफता हुआ घर पहुँचा।बाबा बाहर की बैठक में बैठे हुए थे। मैं उन्हीं के पास उनकी गोद में गिर पड़ा। मेरे लिए कुछ भी बोलना सम्भव नहीं था।दादी भी घर के अन्दर से बैठक में आगयीं।थोड़ी देर बाद मैंने हॉफते उन्हें सारा वृत्तान्त सुनाया।बाबा सुनकर स्तम्भित रह गये। मेरी बातों को उन्होंने गम्भीरता से लिया, क्योंकि मैं झूठ कभी नहीं बोलता था।बाबा मेरे साथ हजारी साव की दुकान की ओर चल पड़े।जब हम वहॉं पहुँचे तो स्त्रियों का आर्त्तनाद उसी प्रकार जारी था। अब वहॉ लोगों की भीड़ भी थी और यह सूचना मिली कि उस दिन प्रातःकाल ही हजारी साव की मृत्यु हो चुकी थी।हम लौट आए।

तब से अबतक मेरे मन में यह प्रश्न उठता है कि जो पन्द्रह दिन पहले मैंने हजारी साव के दरवाजे पर देखा था वह क्या था ? वे औरतें कौन थीं , जो रो रही थीं ? वे कफन से कपड़े पहने कौन से लोग थे ? तपती जेठ की दोपहरी में वह कैसा कुहासा था और उसके भीतर वह रथ जैसी चीज क्या थी? उससे कौन ले जाया गया ? आदमी कब मरता है ? क्या अपनी मौत से बहुत पहले ही ?

किन्तु आजतक वह रहस्य कोई सुलझा न सका।

एक अपार्थिव रहस्य से यह मेरा प्रथम साक्षात्कार था, जिसे मैं अब भी समझ नहीं पाया हूँ।

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