याद आता है गुजरा जमाना 33
मदनमोहन तरुण
मेरी माँ
मेरी माँ गौरवर्णा ,क्षीणकाय, नाटे कद की सुन्दर - सी स्त्री थी।वह बहुत पढी॰ -लिखी नहीं थी , परन्तु उसका अध्ययन अगाध था।उसकी तर्कशक्ति अचूक थी।वह किसी से बातें करते समय अपने मत का समर्थन करने के लिए सटीक दृष्टांत प्रस्तुत करती थी।वह प्रखर, विनम्र और स्वाभिमान- सम्पन्न थी।वह सजने - सँवरने में भी विशवास करती थी। जबतक वह अपने कपडे॰ स्वयं सीती रही , तबतक वह उसमें नये नये प्रयोग करती रही। नवीनता के प्रति उसमें बहुत आकर्षण था। वह अपनी बेटियों एवं बहुओं को भी उसके लिए प्रोत्साहित करती रही।
मेरे ननिहाल में नदी थी ,इसलिए वह तैरना भी अच्छी तरह जानती थी।जब वह मुझसे मिलने दमण में आई तो वह नियमित रूप से समुद्र में तैरने जाती थी और घंटों तैरती।बाद में अन्य स्थानों पर वह मेरी बेटियों के साथ स्वीमिंग पुल का भी आनन्द उठाती रही।
माँ का बक्सा हमारे लिए रहस्यों का भंडार था। वह जब भी बक्सा खोलती ,हम उसे घेर कर खडे॰ हो जाते। उसमें श्रृंगार के सामानों के साथ ढेर सारी पुस्तकें रहती थीं।जिनमें महाभारत, रामायण ,पुराणादि प्रमुख थे। माँ नियमित रूप से तीन -चार घंटे अवश्य पढ॰ती थी , बाद में अध्ययन का यह समय बढ॰ता ही गया।
पुस्तकों के प्रति यह प्रेम मुझे माँ से ही मिला। बडा॰ होने तक मैं उसके बक्से की अधिकतम किताबें पढ॰ गया था और समय - समय पर उससे उन विषयों पर बहस करता , जिसे वह प्रोत्साहित करती थी। वह कभी - कभी व्यंग्यात्मक कविताएँ भी लिखती थी, जिसमें ऐसी बातों पर चुटकी ली गयी होती जो बातें उसे नापसंद थी।मुझे कविता लिखने की संस्कार बाद में सम्भवतः माँ से ही मिला। माँ बच्चों की विशेष रुचियों को प्रोत्साहित करती थी।उसका प्रशासन मधुर , किन्तु सुदृढ॰ था। उसकी इस विशेषता का प्रभाव करीब - करीब हम सभी भाई- बहनों पर पडा॰।मां का सभी सम्मान करते थे।
कृष्ण -दर्शन
वह कृष्णभक्त थी।उसने भगवान कृष्ण और राधिका को प्रत्यक्ष देखा था।
एक बार माँ पिताजी के साथ वृन्दावन गयी। अन्यलोग भी थे। उनदिनों वह बहुत बीमार थी।वह पर्वत पर मंदिर के पास तक जाने में असमर्थ थी।इसलिए उसे कुछ दूरी पर एक वटवृक्ष के पास बैठना पडा॰ जबतक अन्यलोग दर्शन कर वापस लैट न आएँ।जब सभीलोग दर्शन के लिए चले गये तब माँ को बहुत अफसोस हुआ। उसने आँखें मूँद कर कहा - 'हे श्रीकृष्ण ! यह मेरा कैसा दुर्भाग्य है कि मैं यहाँ आकर भी आपका दर्शन नहीं कर सकी ।' उसकी आँखें आँसुओं से भर गयी और मन अथाह पीडा॰ से। थोडी॰ देर तक वह अपनी आँखें बन्द किए रही। कुछदेर बाद उसे घुँघरुओं की आवाज सुनाई पडी॰। उसने जब आँखें खोलीं तो देखा कि एक विशाल , खूब सजा हुआ रथ उसकी ओर चला आ रहा है।रथ में जुते घोडो॰ के घुँघरु मोहक झंकार उत्पन्न करते हुए निकट - से - निकटतर होते जा रहे थे।रथ जैसे -जैसे निकट आया माँ ने देखा कि उसपर एक साँवले रंग का सुदर्शन युवक , मुकुट पहने और हाथ मे बाँसुरी लिए ,एक अतिशय सुन्दरी युवती के पास बैठा है। रथ माँ के पास आकर रुक गया। दोनों युवक- युवती उसे देख कर प्रेमपूर्वक मुस्कुराते रहे, फिर वे रथ में बैठे -बैठे मंदिर की ओर चले गये। उनके चले जाने पर माँ को सहज ही बोध हुआ कि यह तो स्वयं राधा - कृष्ण थे जो उसे दर्शन देने आए थे। माँ की आँखें आँसुओं से तर होगयीं।इस घटना का उसके जीवन पर गहरा प्रभाव पडा॰।
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