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याद आता है गुजरा जमाना - 30
मदनमोहन तरुण
जहानाबाद के वे दिन – 4
जहानाबाद में साहित्यक सजगता हमेशा ही बनी रही।भले उसका रूप बहुत बृहत नहीं रहा हो, परन्तु यहाँ के साहित्यकारों में सृजन के प्रति उत्साह बना रहा। लोग यहाँ की साहित्यिक संस्था 'ज्ञान गोष्ठी ' में नियमित रूप से भाग लेते थे और सामयिक विषयों पर चर्चाएँ करते तथा एक - दूसरे के लेखन की विविध विधाओं का आनन्द लेते थे। इस गोष्ठी का लाभ यह था कि इसमें बुजुर्ग और नवोदित सभी लोग आते थे ,जिससे जहानाबाद की रचनात्मक परम्परा को एक कडी॰ में सहेजने में आसानी होती थी। लोग एक - दूसरे को व्यक्तिग रूप से भी जानते थे। 'ज्ञान गोष्ठी' के अलावा साहित्यकार अवसर - विशेषपर अपने घर पर भी साहित्यक संगोष्ठी का आयोजन करते थे। समय - समय पर यहाँ के कई कवि बाहर के कवि सम्मेलनों में भी बुलाए जाते थे।
चन्द्रदेव शर्मा
जहानाबाद के प्रसिद्ध कवि चन्द्रदेव शर्मा जी जहानाबाद कोर्ट रहते थे। वहीं उनका प्रेस था 'चाँद प्रेस'। उसी प्रेस से उनकी सारी पुस्तकें छपी थीं। वे सही अर्थों में एक प्रखर राजनीतिक व्यंग्यकार थे।उनके लेखन के बारे में आज भी मेरी निर्भ्रान्त और सुनिश्चित धारणा है इस क्षेत्र में हिन्दी साहित्य में उस कद का कोई दूसरा व्यंग्यकार नहीं है। हिन्दी में हास्य - व्यंग्य के लेखनका वैसे भी घोर दारिद्र्य है और जिन लोगों को इस नाम पर बहुत तामझाम के साथ प्रस्तुत किया जाता है , उनमें अधिकतर लोगों की हैसियत एक मामूली बहुरूपिया या विदूषक से अधिक नहीं है।यह खेद की बात है कि हमारे आलोचकों ने चन्द्रदेव शर्मा जी का उचित मूल्यांकन तक नहीं किया। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि किसी सुप्रतिष्ठित हिन्दी साहित्य के इतिहास में उनका नाम तक नहीं है। शर्मा जी की तीन पुस्तकों का उल्लेख बहुत आवश्यक है -1. 'वीर बन्दा' (खण्डकाव्य) 2. 'दुःशासन राज'(व्यंग्यात्मक कविताओं का संकलन) और 3.'बापू के सपूतों का राज' (नाटक)। इनमे 'वीर बन्दा' शर्मा जी की वर्णनगत ओजस्विता के लिए पढा॰ जाना चाहिए ।सही अर्थों में 'दुशासन राज' और 'बापू के सपूतों का राज' उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ हैं , जिनमें उनकी समकालीन राजनीति की गहरी समझ , प्रखर आक्रामकता और एक आहत प्रबुद्ध नागरिक का आक्रोश पूरी गहराई के साथ व्यक्त हुआ है ।
इनके अलावा पडित देवशरण शर्मा, अनिरुद्ध द्विवेदी,कमलापति शास्त्री, दुःखहरण गिरि शास्त्री, उमाकान्त मिश्र आदि यहाँ के वरिष्ठ साहित्यकार थे ।युवापीढी॰ के साहित्यकारों में राधावल्लभ रकेश का नाम उल्लेखनीय है जिसने यहाँ से 'अम्बर' नाम की पत्रिका निकाली थी।
राधावल्लभराकेश बहुत उत्साही और जीवनी शक्ति से भरपूर लेखक थे। यही वैशिट्य उनके लिए जानलेवा सिद्ध हुआ। एकदिन किसी से उनकी कहा सुनी हो गयी। उसके कुछ ही दिनों बाद बडी॰ निर्ममता से उनकी हत्या होगयी।
जहानाबाद में समय - समय पर कवि - सम्मेलनों के आयोजन होते रहते थे। इसमें बिहार के प्रतिष्ठित कवियों को आमंत्रित किया जाता था। गोपाल सिंह नेपाली जी को मेंने आमने - सामने यहीं सुना था। दैनिक 'नवराष्ट्र' के सम्पादक पंडित रामदयाल पाण्डे यहाँ नियमित रूप से आते रहते थे। जनता में साहित्यिक अभिरुचि बढा॰ने में इन सम्मेलनों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। देश के कई कवि इन्हीं कविसम्मेलनों की देन हैं जिनसे उनकी गहरी पहचान बनी। दिनकर और हरिवंशराय बच्चन उन्हीं लोगों में से हैं।
यहाँ के साहित्यकारों में पडित रुद्रदत्त पाठक की चर्चा आवश्यक है जिन्होंने संस्कृत में ' भारतीय रत्न -चरितम' शीर्षक से इतिहास के बृहत ग्रंथ की रचना की , जिसकी भूमिका पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखी। इन्हीं के पुत्र राजवल्लभ पाठक ने मेरे द्वारा सम्पादित त्रैमासिक वैचारिक और विवादास्पद पत्रिका
"अभिशप्त पीढी॰' का प्रकाशन किया। इस विषय पर कभी आगे लिखूँगा।
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