याद आता है गुजरा जमाना 107
दमण के सागरपुत्रों की कथा
मदनमोहन तरुण
दमण की आबादी उनदिनों बहुत कम थी । करीब - करीब
लोग एक -दूसरे को जानते थे, यदि जानते नहीं, तो पहचानते
अवश्य थे।कुछ दिनों बाद तक दमण के विभिन्न तबकों के लोगों से मेरा भी परिचय हो गया।
एक दिन
वहाँ के माछी मोहन भाई टंडेल ने हमें सपरिवार पूर्णिमा के दिन
नौका - विहार का निमंत्रण दिया। भला हम कब रुकने वाले थे ! उनकी नयी मशीनबोट थी। टहापोह झझकारती हुई चाँदनी
रात थी। विशाल चन्द्रबिम्ब सागर के भीतर से निकल रहा था। उसकी अपरिमित रूपराशि से मुग्ध
सागर के हजारों -हजार ज्वार अपनी हथेलियाँ ऊपर की ओर उठाए चाँद की ओर भागे चले जा रहे
थे। आकाश के तारों का प्रतिबिम्ब सागर तल में ठीक ऐसा लग रहा था ,जैसे
किसी पहाडी॰ शहर से नीचे समतल मे बसा बिजली की रोशनी से जगमगाता कोई शहर दिखाई देता
है। सचमुच गजब की रात थी वह। ऐसी रात जो जिन्दगी में कभी - कभी आती है।
मोहन
भाई का पूरा परिवार और हमलोग नौका पर सवार हो गये।गरुड॰ की तरह अपनी चोंच उठाए नाव
सागर में उडा॰न - सी भरती निकल चली। हम करीब
तीस - चालीस किलोमीटर समुद्र के भीतर चले गये। बच्चे कल्लोल कर रहे थे और सागर के ज्वारों
को भी हमलोगों से खेलने में मजा आ रहा था । उन्होंने हमें पूरी तरह भिगा दिया था। तट
से दूर , बीच
सागर में जहाँ चारों ओर पानी के अलावा और कुछ भी नहीं था। इस सम्मोहन में घंटों बीत
गये। आने की इच्छा नहीं
होती थी ,परन्तु
हम ठहरे इंसान ,हमारा
और लहरों का हमेशा साथ कहाँ ! आखिर हमें सागर से विदा लेना ही पडा॰। मोहन भाई ने हमें
तुरत घर लौटने नहीं दिया । वे हमें अपने घर ले आए। कुछ देर हम उस सम्मोहन भरी यात्रा
की याद करते रहे। मोहन भाई ने अब हमें अपना घर दिखाया। बाहर से साधारण दिखनेवाला घर
भीतर से इतना सम्पन्न होगा , यह हमने सोचा भी नहीं था।
दमण
के मछुआरे सामान्यतः आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं।
उनके
घरों में आधुनिक जीवन की सुविधा के वे सारे सामान देखे जा साकते हैं जो नगरों
के सम्पन्न परिवारों के पास होते हैं। परन्तु , इस सम्पन्नता
के लिए उन्हें कडा॰ संघर्ष करना पडा॰ है। जब मैने
मोहन भाई की सुविधा सम्पन्नता की सराहना की तो उन्होने दमण के माछियों के अतीत की याद
करते हुए कहा- ‘ आज दमण
के माछियों में आप जो सम्पन्नता देखते हैं वह सदा ऐसी ही नहीं थी ।
यहाँ
के माछी बहुत गरीब थे।
समुद़
ही उनकी खेती था। पुरुष
समुद़ से मछली पकड॰ कर लाते और स्त्रियाँ उसे बाजार में बेचने जाती थीं। जाल और रस्सी सब हम अपने हाथ
से बनाते थे। पहले
जाल सन की रस्सी से बनाए जाते थे। आज की
तरह नायलोन की तैयार रस्सियाँ नहीं मिलती थी। और अगर मिलती भी तो इतनी महँगी कि हम उसे खरीद नहीं
सकते थे। सन के
साथ ही उन दिनों खजूर के पत्तों से भी रस्सी बनाई जाती थी।यह रस्सी मजबूत होती थी।
इसका उपयोग नाव को बाँधने और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता था। पहले मछुआरे दीव और
ओखा तक मछली पकड॰ने जाते थे। नाव में तीन महीने के लिए खाने - पीने की सामग्री रख ली
जाती थी। इसके
साथ ही नाव में ढेर सारा नमक रख लिया जाता था ताकि उसमें पकडी॰ गयी मछिलयाँ अधिक दिनों
तक सुरक्षित रखी जा सकें। यात्रा
के पहले नारियल डाल कर समुद़ की पूजा की जाती थी , ताकि उनकी यात्रा सकुशल सम्पन्न हो। उन दिनों विकसित बोट नहीं थे
। आजकल तो भयंकर तूफानों में
भी नौका को समुद़
में ले जाना आसान हो गया है। पहले मई महीने तक सागर तूफानी हो जाया करता था। तबसे करीब तीन महीने , नारियलीपू्र्णिमा
तक , समुद़
में जाना बन्द हो जाता था।
उन दिनों
नाव किसी मालिक की होती थी। अन्य
छह - सात लोग उसके सहायक होते थे जिन्हें पन्द्रह रुपया महीना तथा भोजन दिया जाता था। मछली पकड॰ने का काम सहकारी
स्तर पर किया जाता था। उनदिनों
मछली एक ओर सिलवास और दूसरी ओर सूरत
और बम्बई तक बिकने जाती थी। पोर्तगीजों के समय तक दमण के
मछुआरों की आर्थिक हालत खराब बनी रही।
1961 में जब दमण स्वतंत्र हुआ , तब से वे लोग मछली पकड॰ने दुबई तक जाने लगे। मछली पकड॰ने के साथ - साथ वे
अन्य व्यापार भी करने लगे। वे यहाँ
से चाँदी के बदले दुबई से सोना लाने लगे। सोना जहाज के निचले तल्ले में रख कर लाया
जाता ताकि उस पर किसी की नजर न पडे॰। इन पंक्तियों का लेखक जब दमण में था तब रात में करीब - करीब हर घर से धम- धम की आवाज आती रहती।
यह सिलसिला रातभर
चलता रहता। लगता जैसो कोई कठोर चीज हथौडे॰ से पीटी जा रही हो। पूछने पर लोगों ने बताया कि
सोने के बिस्कुटों पर से दुबई की मुहर मिटाई जा रही है तकि इसे भारत के बाजार में उसे आसानी
से बेचा जा सके। उस समय तक दमण सोने की तस्करी
का बहुत बडा॰ केन्द्र बन चुका था।
मोहन
भाई ने अपनी बात आगे बढा॰ते हुए कहा -यहाँ से अठन्नी -चवन्नी ले जाने में भी अच्छा
मुनाफा मिलता था। दुबई में भारत के नौ रुपये का दस मिलता था। जब मछुआरों के जहाज दमण से
बाहर काफी दिनों तक रहने लगे तो सरकार को शंका हुई। सरकार अब जहाजों के आने - जाने का हिसाब रखने
लगी। समय
- समय पर धर - पकड॰ भी होने लगी। ऐसे
में मछुआरों ने एक अलग रास्ता निकाला। वे आधी दूरी तक समुद्र में अपनी नाव से जाते और
उधर दुबई के व्यापारी आधी दूरी तक अपना माल उन तक पहुँचा देते। इस तरह नावों के लम्बे समय
तक बाहर रहने
की शंका का निवारण हो गया और उनका व्यापार खूब फलता
- फूलता रहा।
बडी॰
चीजों के साथ टंडेल यहाँ से लहसुन ले जाते और उसके बदले में वहाँ से लौंग ले आते जो भारतीय
बाजार में लहसुन से काफी महँगा बिकता था। आजादी के काफी पहले तक दमण में
अरब से आनेवाले जहाजों में खजूर के बोरे आते थे। एक बोरे में चालीस किलो खजूर आता था। उन्हीं बोरों में से कुछ में
सोना भी आता था। पोर्तगीज
सरकार इस हेराफेरी से परिचित नहीं थी। स्वतंत्रता के पश्चात सरकार ने माछियों को नाव
खरीदने के लिए कर्ज देना आरम्भ किया। इस राशि
से वे मशीन बोट खरीदते थे तथा दुबई जाकर वह मशीन बेच कर उसमें विदेशी मशीन
लगवा लेते थे। कुछ
लोग दो मशीनें भी लगवा लेते।
दुबई
से सागरतट पर आनेवाले सामानों को तुरत ठीक जगह पर पहुँचाने की सुनिश्चित व्यवस्था थी। एक खेप के लिए मजदूरों को बीस
रुपये मिलते थे। अगर
किसी ने पाँच बार सामान पहुँचाया तो उसे सौ रुपये मिल जाते थे। सामानों को ठीक जगह पर रखवानेवाले और उसका हिसाब -किताब रखनेवाले को मैनेजर
कहते थे। उन्हें
दो से लेकर पाँच हजार रुपये महीना मिलता था। तस्करों के ड्राइवरों को पाँच हजार रुपये माहवार
के साथ मकान , भोजन
एवं विलासिता की सारी सामग्री उपलब्ध कराई जाती थी , क्योंकि
वे उनके सबसे नजदीकी राजदारों में थे और खतरा भी उठाते थे।
आजादी
के पाँच वर्षों तक भारत सरकार ने उनके व्यवसाय पर कोई बन्धन नहीं लगाया न कोई टैक्स लिआ। १९६१ से १९६८ तक दमण में तस्करी
का व्यापार खूब चला।
१९६९
में सरकार ने रेड डाला जिसमें करीब एक करोड॰ रुपये का सामान पकडा॰ गया। पुलिस के लोगों ने भी इसका
भरपूर लाभ उठाया। किसी-
किसी घर का तो पूरा सामान उठा लिया गया। पुरुष घर छोड॰ कर भाग गये। कुछ घरों में तो
केवल स्त्रियाँ ही रह गयीं। सामानों
की धरपकड॰ सर्वथा अनौपचारिक रूप में हुई जिसकी कोई लिखा - पढी॰ नहीं की गयी थी। इस रेड के बाद दमण की जनता
किंकर्तव्यविमूढ॰ हो गयी। उसे अबतक इसका बोध नहीं था कि दुबई से सोना लाकर उसका व्यापारिक
उपयोग करना एक अवैधानिक कृत्य है। परन्तु
इस धरपकड॰ से वह समझ नहीं पा रही थी कि वह अपनी रोजी - रोटी का नया जरिया क्या अपनाए ?
कहते
-कहते मोहन भाई टंडेल थोडी॰ देर रुके , फिर
उन्होंने मानो कुछ याद करते हुए कहा - दमण के माछियों में धनजी भाई और कांजी भाई की
चर्चा आवश्यक है।जब
दमण के अन्य माछी गरीबी की जिन्दगी बिता रहे थे, तब उनके पास चार बडे॰ - बडे॰ जहाज थे। इन चार जहाजों के अलावा अन्य
दो छोटे - छोटे जहाजों से जो आमदनी होती थी उसे वे अपनी बेटियों के बीच बाँट देते थे। कांजी भाई बडे॰ साहसी थे। उन्होंने हाथ से चलाई जानेवाली
नाव से अफ्रीका तक की यात्रा की थी। उनकी
धनाढ्यता का कारण उनका अतुल साहस ही था। यही साहस आगे चलकर दमण के अन्य मछुआरों में
भी जागा और लक्ष्मी उन पर भी प्रसन्न होकर उनके घरों में प्रविष्ट हुईं।
अबतक भाभी जी , मोहन
भाई की पत्नी, खाने
की थाल लेकर आगईं।भोजन में भात के साथ सेंकी हुई और रसदार मछली थी।देख कर मोहन भाई
मुस्कुराए। मैं इसका करण जानता था। सवेरे सब्जी मार्केट में मैं जब भी सब्जी खरीदने
जाता वे हँसते हुए कहते 'साहब
आप केवल घास खाता है?'
घास अर्थात सब्जी। भाभी जी ने भोजन की थाल के
साथ फेनी शराब की एक बोतल भी रख दी। भला इसके बिना अतिथि का स्वागत कैसे पूरा हो सकता
है! दमण में बच्चे को पैदा होते ही ब्राण्डी की पहली घुट्टी दी जाती है। काजू और फेनी गोवा ,दमण
की अपनी शराब है। भोजनादि
कार्य समाप्त कर हमने चलने की अनुमित चाही तो मोहन भाई हमें आपनी कार से घर तक छोड॰
आए।
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